हमने बचपन में सफ़ेद क्रिकेट देखी है, खेली है। अब क्रिकेट रंगीन है। इसलिए इसकी हर बात रंगीन है।
पहले रेडियो पर क्रिकेट को सुना जाता था। आज टीवी पर क्रिकेट को देखा जाता है। टीवी पर आज क्रिकेट देखने के साथ सुना भी जाता है, ये जानकर नहीं लिख रहा। क्योंकि इसमें सुनने जैसी कोई बात नहीं है। ना भी सुना जाए तो देखने और स्क्रीन पर स्कोर बोर्ड पढ़ने से भी काम चल सकता है।
मैं विशेष तौर पर आजकल टीवी पर की जाने वाली उस हिेंंदी कमेंट्री की बात कर रहा हूं, जो मैदान से नहीं होती। विश्व कप के मैच ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में हो रहे हैं। लेकिन ये हिंदी कमेंट्री दिल्ली-मुंबई के स्टूडियोज़ से ही की जाती है। इस कमेंट्री का ज़िम्मा कुछ पूर्व क्रिकेटर्स पर है। ये भी हमारी तरह टीवी स्क्रीन पर मैच देखकर ही कमेंट्री करते हैं। ये क्या बोलते हैं, कैसा बोलते हैं, जिन्होंने भी इन्हें सुना है, वो बेहतर बता सकते हैं। मैं इस पर कोई कमेंट नहीं करूंगा।
हां, उस दौर का ज़िक्र ज़रूर करना चाहूंगा जब जसदेव सिंह, सुशील दोषी, मुरली मनोहर मंजुल और रवि चतुर्वेदी हिंदी में रेडियो पर कमेंट्री करते थे। ये जब 'आंंखों देखा हाल' सुनाते थे तो शब्दों और आवाज़ के उतार चढाव से ही सुनने वालों के ज़ेहन में क्रिकेट के मैदान की हर फील को उकेर देते थे। क्रिकेट का वो रोमांच अद्भुत था। इसे नोस्टेलजिया भी कह सकते है। इसे वही जान सकते हैं जिन्होंने उस कमेंट्री को पॉकेट ट्राज़िस्टर स्कूल या दफ्तर छुपा कर ले जाकर सुना है।
तकनीक विकसित होने के साथ क्रिकेट मैचों का प्रसारण भी उन्नत हुआ है। टीवी पर ब्लैक एंड व्हाइट प्रसारण के दिनों से आज वो दौर भी आ गया है जब स्टम्प्स पर ही कैमरे लगे होते हैं। स्टम्प पर बॉल छूते ही लाइट जल जाती है। कई-कई कोणों से मैच दिखाया जाता है। ब्लैक एंड व्हाइट प्रसारण के दौर में विकेट के एक तरफ ही टीवी कैमरे लगे होते थे। उस वक्त एक ओवर बैट्समैन को सामने की तरफ से बैटिंग करते देखा जाता था यानि उसका मुंह कैमरे की तरफ रहता था। फिर अगले ओवर में बैट्समैन के बैटिंग करते वक्त उसकी पीठ दिखाई देती थी।
क्रिकेट पहले जिस तरह कंट्री सैन्ट्रिक था वैसा आज नहीं दिखता। इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि उस वक्त आज की तरह पूरा साल क्रिकेट नहीं होता था। आईपीएल, चीयरलीडर्स, नाइट पार्टीज़ ने आज क्रिकेट को तमाशा अधिक बना दिया है। अब इसकी हर बात कॉमर्शियल है। सत्तर के दशक के शुरू तक क्रिकेट खिलाड़ियों का मेहनताना प्रति दिन के हिसाब से कुछ सौ रुपये में ही होता था। आज क्रिकेटर की कमाई के स्रोत अनंत है। मैं किसी स्याह स्रोत की नहीं, सफेद स्रोतों की ही बात कर रहा हूं।
देश में सत्तर के दशक तक क्रिकेट और हॉकी समान तौर पर लोकप्रिय थे।1975 में कुआलालंपुर में भारत ने हॉकी का विश्व कप जीता था तो हॉकी खिलाड़ियों को देश ने वैसे ही हाथों हाथ लिया था जैसे कि क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीतने पर क्रिकेटर्स को 1983 और 2011 में लिया था। उस वक्त अजीत पाल सिंह, सुरजीत सिंह, गोविंदा, असलम शेर ख़ान और अशोक कुमार (मेजर ध्यानचंद के सुपुत्र) समेत हॉकी टीम के सभी सदस्यों का सम्मान नायकों की तरह किया गया था। लेकिन 1983 में इंग्लैंड में कपिल देव के डेविल्स ने वर्ल्ड कप जीता तो उसी के साथ क्रिकेट का कॉमर्शियलाइज़ेशन शुरू हुआ। ये वही दौर था जब देश में कलर टेलीविज़न नया नया आया था।
क्रिकेट से जैसे जैसे पैसा जुड़ता गया वैसे वैसे इसके उत्थान के साथ भारत में हॉकी का पतन भी होता गया।अस्सी के दशक के मध्य में ही शारजाह में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैचों का आयोजन शुरू हुआ। क्रिकेट पर सट्टेबाज़ी बड़े पैमाने पर की जाने लगी। उन्हीं दिनों में ऐसी तस्वीरें भी सामने आईं जिसमें शारजाह में अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को मैच देखते हुए ही फोन पर बातें करते देखा जा सकता था। आगे चलकर क्रिकेट के सफेद दामन पर फिक्सिंग के दाग़ भी लगे।
क्रिकेट को दुनिया भर में गवर्न करने वाली संस्था आईसीसी की कमान जहां पहले इंग्लैंड जैसे देश के क्रिकेट बोर्डों के हाथ में रहती थी वो भी भारत जैसे उपमहाद्वीप के देशों के हाथ में आ गई। आईसीसी का हेडक्वार्टर भी लंदन की जगह दुबई हो गया। भारत का क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) आज दुनिया के सभी क्रिकेट बोर्डों में सबसे अमीर और सबसे शक्तिशाली माना जाता है। क्रिकेट मैचों के टीवी प्रसारण अधिकार बेचने से ही बोर्ड को अरबों की कमाई होती है। लेकिन इतना सब होने के बाद भी क्रिकेट से आज उसकी आत्मा गायब नज़र आती है। शायद मेरे ये विचार जेनेरेशन गैप भी हो सकते हैं।
स्लॉग ओवर
हर्षा भोगले को छोड़ दिया जाए तो आज टीवी पर कमेंट्री अधिकतर पूर्व क्रिकेटर ही करते हैं। लेकिन जब रेडियो पर कमेंट्री का ज़माना था तो कमेंटेटर्स के साथ एक्सपर्ट कमेंट्स के लिए एक पूर्व क्रिकेटर को बुलाया जाता था। इस काम के लिए लाला अमरनाथ को बहुत याद किया जाता था। लाला अुमरनाथ बेबाकी से अपनी बात कहते थे। कई बार वे सवाल पूछने वाले कमेंटेटर को भी लाजवाब कर दिया करते थे। ऐसे ही एक बार टेस्ट मैच के शुरू होने पर एक कमेंटेटर लालाजी से सवाल कर बैठा- "लालाजी आज कोटला के मैदान पर घास भी हरी नज़र आ रही है, आप इस पर क्या कहते हैं?" इस पर लालाजी का एक्सपर्ट कमेंट था- "मैंने तो घास हमेशा हरी ही देखी है, आपने शायद दूसरे रंग की भी देख रखी होगी।"
बहुत सुंदर पोस्ट.
जवाब देंहटाएंBahut khub :)
जवाब देंहटाएंमस्त
जवाब देंहटाएंNice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us.. Happy Independence Day 2015, Latest Government Jobs. Top 10 Website
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