जी हां, आज 93 मिनट में मैंने 275 साल पहले के काल को जिया..आप कह रहे होंगे कि क्या लंबी छोड़ने बैठ गया हूं...या मैं भी भूतकाल और आज के बीच झूलता हुआ भविष्यवक्ता बनने की राह पर चल निकला हूं...ऐसा कुछ भी नहीं है... भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की कड़वाहट का 63 साल का इतिहास है...लेकिन मैं 63 साल की नहीं 275 साल की दुश्मनी की बात कर रहा हूं...स्पेन और पुर्तगाल भी भारत-पाकिस्तान की तरह यूरोप में दो पड़ोसी मुल्क है...और इनकी दुश्मनी का इतिहास 275 साल पुराना है..कल एक बार फिर स्पेन और पुर्तगाल आमने-सामने थे...वर्ल्ड कप फुटबॉल में सुपर एट में पहुंचने के लिए सब कुछ झोंक देने के इरादे के साथ....
मैं फुटबॉल का बहुत ज़्यादा प्रशंसक नहीं हूं...लेकिन जब भी वर्ल्ड कप आता है कुछ दिग्गज टीमों के मैच देखने की कोशिश ज़रूर करता हूं...खास तौर पर ब्राज़ील, अर्जेंटीना, जर्मनी, इटली, इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल जैसी टीमों मे किन्हीं दो को भिड़ते देखने से ज़्यादा रोमांचकारी कुछ नहीं होता...आज स्पेन और पुर्तगाल की टक्कर हुई तो मुझे खेल से ज़्यादा ऐतिहासिक और राजनीतिक नज़रिये से भी इसका इंतज़ार था...सच पूछो तो पुर्तगाल के औपनिवेशिक और साम्राज्यवादी इतिहास की वजह से मैं यही चाहता था कि स्पेन इस महायुद्ध में विजयी हो...लेकिन स्पेन की राह में चट्टान बन कर अड़ा था पुर्तगाल का सुपरस्टार क्रिस्टियानो रोनाल्डो...
साउथ अफ्रीका के केपटाउन में ग्रीन प्वाइंट स्टेडियम में पुर्तगाल और स्पेन के बीच फुटबॉल का महायुद्ध शुरू हुआ...ये भी इतेफ़ाक ही है कि वर्ल्ड कप में पहले कभी इन दो पड़ोसी मुल्कों की टक्कर नहीं हुई थी...वर्ल्ड में इस वक्त यूरोपियन चैंपियन स्पेन की रैंकिंग नंबर दो और पुर्तगाल की नंबर तीन है......इतिहास गवाह है कि स्पेन और पुर्तगाल का भूगोल एक सरीखा होने के बावजूद दोनों देशों का मिज़ाज हमेशा अलग रहा...18वीं और 19वीं सदी की बात करें तो स्पेन के मुकाबले छोटा होने के बावजूद पुर्तगाल साम्राज्यवादी रहा...पुर्तगाल ने जमकर अफ्रीका, साउथ अमेरिका और एशिया में अपने उपनिवेश बनाये...इसके उलट स्पेन हमेशा उसी में खुश रहा जो उसके पास था...लेकिन स्पेन ने अपनी ज़मीन की हिफ़ाज़त के लिए कभी कोई कसर नहीं छोड़ी...
स्पेन और पुर्तगाल 275 साल पहले भी भिड़े थे...मसला साउथ अमेरिका में बांडा ओरिएंटल में वर्चस्व को लेकर था...ब्राज़ील की सीमा पर बांडा ओरिएंटल वही जगह है जिसे आज हम उरूग्वे देश के तौर पर जानते हैं...पंद्रहवीं सदी की एक संधि के तहत बांडा ओरिएंटल पर स्पेन का अधिकार था...लेकिन पुर्तगाल ने यहां उपनिवेश के तौर पर स्क्रेमेंटो कॉलोनी बना कर उसके आसपास का इलाका घेरना शुरू कर दिया...स्पेन ने पुर्तगाल की इस बेज़ा हरकत पर अंकुश लगाने के लिए अपनी सेनाओं को भेजा...दिलचस्प बात ये है कि इसमें चार हज़ार भारतीय मूल के लड़ाके भी थे...लेकिन दो साल तक युद्ध चलने के बावजूद पुर्तगाल ने स्पेन को छकाए रखा...आखिरकार फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन और नीदरलैंड के दखल के बाद युद्ध बंद हुआ...इसके बाद दोनों देशों में शत्रुता का माहौल करीब दो सदी तक चलता रहा...
17 मार्च 1939 को स्पेन और पुर्तगाल के बीच एक दूसरे पर पहले आक्रमण न करने की संधि हुई...तब से इतिहास-भूगोल को लेकर दोनों देशों के बीच कभी तलवारें नहीं खिंची...लेकिन 29 जून 2010 को केपटाउन के ग्रीन प्वाइंट स्टेडियम में स्पेन और पुर्तगाल के योद्धा फिर आमने-सामने थे...लेकिन निहत्थे...फुटबॉल को पूरी ताकत के साथ दूसरे के डिफेंस को चीरते हुए गोल में टांगने के लिए...आज दोनों के बीच समझौता कराने वाली कोई तीसरी शक्ति मौजूद नहीं थी...लड़ाई आर या पार की थी...स्पेन के स्ट्राइकर्स और मिडफील्डर्स के हर तीर का जवाब देने का सबसे ज़्यादा भार पुर्तगाल के फुटबॉल गॉड रोनाल्डो के मज़बूत कंधों पर था...लेकिन स्पेन के स्ट्राइकर डेविड विला कुछ और ही ठान कर मैदान में उतरे थे...
स्पेन ने खास तौर पर रोनाल्डो को मार्क करने की रणनीति बना रखी थी...दोनों टीमों ने एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया...आखिर मैच के दूसरे हॉफ में स्पेन के डेविड विला के रिबाउंड किक ने पुर्तगाल के वर्ल्ड कप के सुपर 8 में आने के सपने को चकनाचूर कर दिया...स्पेन 1-0 से जीता...इस महायुद्ध ने जहां स्पेन और पुर्तगाल के लोगों को उन्हीं लम्हों का अहसास करा दिया, जिन्हें उन्होंने दुश्मनी के इतिहास में सिर्फ किताबों में ही जिया था...एक बात और साफ हुई कि खेल के मैदान में जीत देशों का भूगोल तय नही करता...
देश का कोई धर्म, जात या नस्ल नहीं तो फिर यहां रहने वाले किसी पहचान के दायरे में क्यों बांधे जाएं।
बुधवार, 30 जून 2010
मंगलवार, 29 जून 2010
ब्लॉगवाणी छुट्टी पर, अंगना में आई हमारीवाणी...खुशदीप
सांची कहे तोरे आवन से हमरे,
अंगना में आई बहार भोजी...
नदिया के पार का बड़ा हिट गाना है ये...लेकिन आज मुझे क्यों याद आ गया...इसकी बात पोस्ट के आखिर में करूंगा... पहले बात ब्लॉगवाणी की...दरअसल, मयखाना ब्लॉग वाले मुनीश जी की एक पोस्ट पढ़ी...सुनकर बड़ा दुख हुआ कि अब ब्लॉगवाणी पर हमेशा के लिए विराम लग गया है...पिछले साल अगस्त में जब से मैंने ब्लॉगिंग शुरू की, ब्लॉगवाणी से खास लगाव रहा...हमेशा ऐसा ही लगा कि ब्लॉगवाणी बड़ा परिवार है और मैं इसका सदस्य हूं...बीच में एक बार ब्लॉगवाणी बंद भी हुई लेकिन ब्लॉगजगत के ज़बरदस्त आग्रह के बाद मैथिली जी और सिरिल जी ने इसे नए तेवर और कलेवर में शुरू किया...
लेकिन इस बार लगता है समस्या गंभीर है...कम से कम मुनीश जी की पोस्ट से तो ऐसा ही लगता है कि ब्लॉगवाणी हाल-फिलहाल में दोबारा शुरू नहीं होगी...वैसे मैं अब भी यही दुआ करता हूं कि मेरे गुरुदेव समीर लाल समीर जी की बात सच हो और ब्लॉगवाणी जल्दी ही दोबारा शुरू हो...मुझे लगता है बाकी सभी ब्लॉगर भी दिल से यही चाहते हैं...
लेकिन इतने आग्रह के बाद भी ब्लॉगवाणी दोबारा शुरू नहीं होती तो हमें इनके संचालकों के फैसले का सम्मान करना चाहिए...हो सके तो सभी को मिलकर एक प्रस्ताव पारित कर मैथिली जी और सिरिल जी का आभार व्यक्त करना चाहिए कि उन्होंने इतने लंबे अरसे तक निस्वार्थ भाव और पूरे समर्पण से हिंदी ब्लॉगिंग की सेवा की...ये आभार जताने के लिए रवींद्र प्रभात जी ब्लोगोत्सव का मंच उपलब्ध कराएं तो सोने पर सुहागे वाली बात होगी...ब्लॉगवाणी के बाद चिट्ठा जगत ने ब्लॉगर्स के फ्लो को अच्छी तरह संभाला है...ब्लॉगवाणी के साथ चिट्ठा जगत के संचालकों का भी सम्मान किया जाए तो दोहरी खुशी वाली बात होगी...
खैर, जीवन तो चलने का नाम है...अब रुका तो जा नहीं सकता...ब्लॉगिंग की गंगा तो बहती रहनी चाहिए...कहते हैं न कि एक रास्ता बंद होता है तो ऊपर वाला साथ ही दूसरे रास्ते भी खोलता है...ब्लॉगवाणी के छुट्टी पर जाने के कुछ वक्त पहले ही इंडली एग्रीगेटर का आगमन हुआ...इंग्लिश के एग्रीगेटर की तर्ज पर इंडली हवा के ताजा ठंडे झोंके की तरह लगा...इसमें कुछ ऐसे अभिनव प्रयोग दिखे जो पहले किसी एग्रीगेटर में नहीं दिखे थे...इसके लिए एग्रीगेटर की टीम वाकई बधाई की पात्र है....
अब आपको बताता हूं कि मुझे ऊपर वाला गाना क्यों याद आया....सांची कहे तोरे आवन से....दरअसल कल मेरी पोस्ट पर एक नए एग्रीगेटर हमारीवाणी की ओर से कमेंट आया था...मैंने तत्काल हमारी वाणी पर जाकर क्लिक किया...देखने में बड़ा सीधा, सच्चा और तड़क-भड़क से दूर एग्रीगेटर लगा...ऐसा लगा कि यहां ब्लॉगरों की पोस्ट ही यूएसपी हैं...बिना कोई झंझट जितनी भी पोस्ट दिन में आती हैं, सब एक ही पेज़ पर ऊपर से नीचे दिखती रहती हैं...ढूंढने में कोई झंझट नहीं...साथ वाली साइड पर हिंदी के सभी ब्लॉग की फेहरिस्त भी दी गई है...आपको जिसे पढ़ना है, जिसे कमेंट देना है, सीधे वहीं से किया जा सकता है...मैं तो अब जब भी ब्लॉगिंग के लिए नेट पर आऊंगा, सबसे पहले हमारीवाणी को खोलकर साथ रख लूंगा...ब्लॉग्स को ढूंढने की मशक्कत ही खत्म हो जाएगी...इसलिए हमारीवाणी देखकर तो यही गाने को मन कर रहा है...सांची कहे तोरे आवन से, ब्लॉगवुड के अंगना में आई बहार, हमारीवाणी....
खत्म करने से पहले एक बात और...आजकल मेरे ब्लॉग पर ब्लॉग प्रहरी का लिंक भी नहीं खुल रहा...मैं इसके संचालक कनिष्क कश्यप से दो-तीन बार मिल चुका हूं...बहुत ही प्रतिभावान और काम के प्रति समर्पित युवा है...लगता है कनिष्क भी ब्लॉग प्रहरी को नया रंग-रूप देने में लगे होंगे...उनसे भी आग्रह है, ब्लॉग प्रहरी को जल्दी शुरू कीजिए...अब जितने ज़्यादा एग्रीगेटर होंगे, ब्लॉगरों के लिए उतना ही फायदेमंद होगा...एक तो पाठक ज़्यादा आएंगे और फिर किसी एक एग्रीगेटर के भरोसे बैठे रहने की आदत भी छूटेगी...
अंगना में आई बहार भोजी...
नदिया के पार का बड़ा हिट गाना है ये...लेकिन आज मुझे क्यों याद आ गया...इसकी बात पोस्ट के आखिर में करूंगा... पहले बात ब्लॉगवाणी की...दरअसल, मयखाना ब्लॉग वाले मुनीश जी की एक पोस्ट पढ़ी...सुनकर बड़ा दुख हुआ कि अब ब्लॉगवाणी पर हमेशा के लिए विराम लग गया है...पिछले साल अगस्त में जब से मैंने ब्लॉगिंग शुरू की, ब्लॉगवाणी से खास लगाव रहा...हमेशा ऐसा ही लगा कि ब्लॉगवाणी बड़ा परिवार है और मैं इसका सदस्य हूं...बीच में एक बार ब्लॉगवाणी बंद भी हुई लेकिन ब्लॉगजगत के ज़बरदस्त आग्रह के बाद मैथिली जी और सिरिल जी ने इसे नए तेवर और कलेवर में शुरू किया...
लेकिन इस बार लगता है समस्या गंभीर है...कम से कम मुनीश जी की पोस्ट से तो ऐसा ही लगता है कि ब्लॉगवाणी हाल-फिलहाल में दोबारा शुरू नहीं होगी...वैसे मैं अब भी यही दुआ करता हूं कि मेरे गुरुदेव समीर लाल समीर जी की बात सच हो और ब्लॉगवाणी जल्दी ही दोबारा शुरू हो...मुझे लगता है बाकी सभी ब्लॉगर भी दिल से यही चाहते हैं...
लेकिन इतने आग्रह के बाद भी ब्लॉगवाणी दोबारा शुरू नहीं होती तो हमें इनके संचालकों के फैसले का सम्मान करना चाहिए...हो सके तो सभी को मिलकर एक प्रस्ताव पारित कर मैथिली जी और सिरिल जी का आभार व्यक्त करना चाहिए कि उन्होंने इतने लंबे अरसे तक निस्वार्थ भाव और पूरे समर्पण से हिंदी ब्लॉगिंग की सेवा की...ये आभार जताने के लिए रवींद्र प्रभात जी ब्लोगोत्सव का मंच उपलब्ध कराएं तो सोने पर सुहागे वाली बात होगी...ब्लॉगवाणी के बाद चिट्ठा जगत ने ब्लॉगर्स के फ्लो को अच्छी तरह संभाला है...ब्लॉगवाणी के साथ चिट्ठा जगत के संचालकों का भी सम्मान किया जाए तो दोहरी खुशी वाली बात होगी...
खैर, जीवन तो चलने का नाम है...अब रुका तो जा नहीं सकता...ब्लॉगिंग की गंगा तो बहती रहनी चाहिए...कहते हैं न कि एक रास्ता बंद होता है तो ऊपर वाला साथ ही दूसरे रास्ते भी खोलता है...ब्लॉगवाणी के छुट्टी पर जाने के कुछ वक्त पहले ही इंडली एग्रीगेटर का आगमन हुआ...इंग्लिश के एग्रीगेटर की तर्ज पर इंडली हवा के ताजा ठंडे झोंके की तरह लगा...इसमें कुछ ऐसे अभिनव प्रयोग दिखे जो पहले किसी एग्रीगेटर में नहीं दिखे थे...इसके लिए एग्रीगेटर की टीम वाकई बधाई की पात्र है....
अब आपको बताता हूं कि मुझे ऊपर वाला गाना क्यों याद आया....सांची कहे तोरे आवन से....दरअसल कल मेरी पोस्ट पर एक नए एग्रीगेटर हमारीवाणी की ओर से कमेंट आया था...मैंने तत्काल हमारी वाणी पर जाकर क्लिक किया...देखने में बड़ा सीधा, सच्चा और तड़क-भड़क से दूर एग्रीगेटर लगा...ऐसा लगा कि यहां ब्लॉगरों की पोस्ट ही यूएसपी हैं...बिना कोई झंझट जितनी भी पोस्ट दिन में आती हैं, सब एक ही पेज़ पर ऊपर से नीचे दिखती रहती हैं...ढूंढने में कोई झंझट नहीं...साथ वाली साइड पर हिंदी के सभी ब्लॉग की फेहरिस्त भी दी गई है...आपको जिसे पढ़ना है, जिसे कमेंट देना है, सीधे वहीं से किया जा सकता है...मैं तो अब जब भी ब्लॉगिंग के लिए नेट पर आऊंगा, सबसे पहले हमारीवाणी को खोलकर साथ रख लूंगा...ब्लॉग्स को ढूंढने की मशक्कत ही खत्म हो जाएगी...इसलिए हमारीवाणी देखकर तो यही गाने को मन कर रहा है...सांची कहे तोरे आवन से, ब्लॉगवुड के अंगना में आई बहार, हमारीवाणी....
खत्म करने से पहले एक बात और...आजकल मेरे ब्लॉग पर ब्लॉग प्रहरी का लिंक भी नहीं खुल रहा...मैं इसके संचालक कनिष्क कश्यप से दो-तीन बार मिल चुका हूं...बहुत ही प्रतिभावान और काम के प्रति समर्पित युवा है...लगता है कनिष्क भी ब्लॉग प्रहरी को नया रंग-रूप देने में लगे होंगे...उनसे भी आग्रह है, ब्लॉग प्रहरी को जल्दी शुरू कीजिए...अब जितने ज़्यादा एग्रीगेटर होंगे, ब्लॉगरों के लिए उतना ही फायदेमंद होगा...एक तो पाठक ज़्यादा आएंगे और फिर किसी एक एग्रीगेटर के भरोसे बैठे रहने की आदत भी छूटेगी...
सोमवार, 28 जून 2010
आप किस शख्सीयत के मालिक हैं...खुशदीप
दो सूरतें जो आपकी शख्सीयत को तय करती हैं-
पहली सूरत...
आप अपने बारे में क्या सोचते हैं, जब आपके पास कुछ भी नहीं होता...
दूसरी सूरत...
आप दूसरों के बारे में क्या सोचते हैं, जब आपके पास सब कुछ होता है...
स्वामी विवेकानंद ने कहा था-
आदमी परिंदे की तरह उड़ना चाहता है...
आदमी कोयल की तरह गाना चाहता है...
आदमी मोर की तरह नाचना चाहता है...
आदमी मछली की तरह तैरना चाहता है...
लेकिन आदमी बस आदमी बन कर ही नहीं जीना चाहता...
पहली सूरत...
आप अपने बारे में क्या सोचते हैं, जब आपके पास कुछ भी नहीं होता...
दूसरी सूरत...
आप दूसरों के बारे में क्या सोचते हैं, जब आपके पास सब कुछ होता है...
स्वामी विवेकानंद ने कहा था-
आदमी परिंदे की तरह उड़ना चाहता है...
आदमी कोयल की तरह गाना चाहता है...
आदमी मोर की तरह नाचना चाहता है...
आदमी मछली की तरह तैरना चाहता है...
लेकिन आदमी बस आदमी बन कर ही नहीं जीना चाहता...
रविवार, 27 जून 2010
सरहद से बंटने का दर्द...खुशदीप
कल आप से वादा किया था कि आपको भारत-पाकिस्तान सरहद के कुछ अनछुए पहलुओं से रू-ब-रू कराऊंगा...63 साल पहले सरहद नाम की आभासी लकीर ने दोनों तरफ़ के इनसानों को बांटा और वो एक-दूसरे के लिए परदेसी हो गए...दोनों तरफ़ के बाशिंदों को लगता है कि सरहद के उस पार न जाने कौन सी दुनिया बसती है... हैं सब एक ही ज़मीन, एक ही मातृभूमि के बेटे...लेकिन मज़हबी सियासत और सत्ता की बिसात ने उन्हें आपस में दुश्मन बना दिया... कहा जाता है कि ऐसा कोई मसला नहीं होता जिसका बातचीत से हल न निकले...लेकिन दोनों ओर के हुक्मरान बातचीत तो छह दशक से करते आ रहे हैं... उससे क्या मिला...बल्कि मर्ज़ बढ़ता गया, जैसे जैसे दवा की... सरहद एक ख़ौफ़ की लकीर बनती गई...
क्या है इस सरहद का सच...
आज़ादी से पहले पार्टिशन काउंसिल ने दोनों देशों का जो ख़ाका ज़ेहन में खींचा था, उसमें यही था कि देश चाहें दो बन जाएं लेकिन सरहद पर दोनों तरफ़ के लोगों की आवाजाही में कोई बंदिशें नहीं रहेंगी...15 अगस्त 1947 के बाद भी करीब एक साल तक वाकई बिना किसी रोक-टोक के लोग इधर से उधर, उधर से इधर आते रहे... पहली बार सरहद पर भारत सरकार ने 14 जुलाई 1948 को इमरजेंसी परमिट सिस्टम की शुरुआत की... असल में उत्तर भारत से जो मुसलमान विभाजन के वक्त पाकिस्तान गए थे, उनमें से कुछ का चंद महीनों में ही पाकिस्तान के माहौल से मोहभंग हो गया... उन्होंने भारत अपने पुश्तैनी घरों की ओर लौटना शुरू कर दिया...पाकिस्तान में मुहाज़िर कहे जाने वाले ये मुसलमान भारत लौट कर फिर नागरिकता पर दावा करते तो भारत सरकार के लिए कई तरह की तकनीकी दिक्कतें खड़ी हो जातीं...
भारत के इमरजेंसी सिस्टम के दो महीने बाद ही यानि सितंबर 1948 में पाकिस्तान ने समानांतर परमिट सिस्टम लागू किया...इसका मकसद भारत से पाकिस्तान आने वाले मुसलमानों को रोकना था... 1952 में पाकिस्तान ने पासपोर्ट सिस्टम शुरू करने के साथ ही साफ कर दिया कि उसके लिए भारत में रहने वाले मुसलमान विदेशी ही होंगे... यानि दोनों देशों के लोगों के लिए सरहद से आवाजाही मुश्किल से मुश्किल ही होती गई... मसलन तीन शहरों के लिए ही वीज़ा... पहुंचने के 24 घंटे में ही थाने में रिपोर्ट करने की बाध्यता... सरहद के दूसरी ओर जाना है तो वहां के किसी बंदे का आपके लिए न्योता होना चाहिए... यानि टूरिस्ट की तरह कोई एक-दूसरे के देश में जाना चाहे तो उसे पहले काफ़ी पापड़ बेलने होंगे... ऐसे मुश्किल हालात की वजह से ही शायद जिस पीढ़ी ने विभाजन का दौर देखा, उसके लिए सरहद हमेशा भावनाओं से जु़ड़ा मुद्दा ही रही... लेकिन 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद सरहद के दोनों ओर जो पीढ़ियां जवान हुईं, उनका नज़रिया बिल्कुल ही बदल गया... अब सरहद पार के लोग भावना के आइने में नहीं कट्टर दुश्मन के खांचे में गिने जाने लगे... ऐसे में दोनों देशों की कूटनीति भी बदली...
1970 तक जहां सवाल महज़ सरहद पार आवाजाही का था, वहीं पाकिस्तान ने 1971 के बाद कश्मीर को सरहद से जोड़कर संघर्ष और आंतक का एक नया चेहरा दोनों देशों के संबंधों को दे दिया... इसलिए अब दोनों देशों के बीच बात आतंक से शुरू होती है जो सरहद या एलओसी के संकट को समेटती हुई कश्मीर को भी अपनी जद में ले लेती है...जिसका फायदा सिर्फ और सिर्फ आतंकवाद उठाता है और आपसी बातचीत अंतरराष्ट्रीय ज़रूरत में तब्दील हो जाती है...
चलते चलते सरहद से बंटने का दर्द शाहरुख़ ख़ान की आवाज़ में वीर-ज़ारा के ज़रिए ज़रूर सुन लीजिए...
क्या है इस सरहद का सच...
आज़ादी से पहले पार्टिशन काउंसिल ने दोनों देशों का जो ख़ाका ज़ेहन में खींचा था, उसमें यही था कि देश चाहें दो बन जाएं लेकिन सरहद पर दोनों तरफ़ के लोगों की आवाजाही में कोई बंदिशें नहीं रहेंगी...15 अगस्त 1947 के बाद भी करीब एक साल तक वाकई बिना किसी रोक-टोक के लोग इधर से उधर, उधर से इधर आते रहे... पहली बार सरहद पर भारत सरकार ने 14 जुलाई 1948 को इमरजेंसी परमिट सिस्टम की शुरुआत की... असल में उत्तर भारत से जो मुसलमान विभाजन के वक्त पाकिस्तान गए थे, उनमें से कुछ का चंद महीनों में ही पाकिस्तान के माहौल से मोहभंग हो गया... उन्होंने भारत अपने पुश्तैनी घरों की ओर लौटना शुरू कर दिया...पाकिस्तान में मुहाज़िर कहे जाने वाले ये मुसलमान भारत लौट कर फिर नागरिकता पर दावा करते तो भारत सरकार के लिए कई तरह की तकनीकी दिक्कतें खड़ी हो जातीं...
भारत के इमरजेंसी सिस्टम के दो महीने बाद ही यानि सितंबर 1948 में पाकिस्तान ने समानांतर परमिट सिस्टम लागू किया...इसका मकसद भारत से पाकिस्तान आने वाले मुसलमानों को रोकना था... 1952 में पाकिस्तान ने पासपोर्ट सिस्टम शुरू करने के साथ ही साफ कर दिया कि उसके लिए भारत में रहने वाले मुसलमान विदेशी ही होंगे... यानि दोनों देशों के लोगों के लिए सरहद से आवाजाही मुश्किल से मुश्किल ही होती गई... मसलन तीन शहरों के लिए ही वीज़ा... पहुंचने के 24 घंटे में ही थाने में रिपोर्ट करने की बाध्यता... सरहद के दूसरी ओर जाना है तो वहां के किसी बंदे का आपके लिए न्योता होना चाहिए... यानि टूरिस्ट की तरह कोई एक-दूसरे के देश में जाना चाहे तो उसे पहले काफ़ी पापड़ बेलने होंगे... ऐसे मुश्किल हालात की वजह से ही शायद जिस पीढ़ी ने विभाजन का दौर देखा, उसके लिए सरहद हमेशा भावनाओं से जु़ड़ा मुद्दा ही रही... लेकिन 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद सरहद के दोनों ओर जो पीढ़ियां जवान हुईं, उनका नज़रिया बिल्कुल ही बदल गया... अब सरहद पार के लोग भावना के आइने में नहीं कट्टर दुश्मन के खांचे में गिने जाने लगे... ऐसे में दोनों देशों की कूटनीति भी बदली...
1970 तक जहां सवाल महज़ सरहद पार आवाजाही का था, वहीं पाकिस्तान ने 1971 के बाद कश्मीर को सरहद से जोड़कर संघर्ष और आंतक का एक नया चेहरा दोनों देशों के संबंधों को दे दिया... इसलिए अब दोनों देशों के बीच बात आतंक से शुरू होती है जो सरहद या एलओसी के संकट को समेटती हुई कश्मीर को भी अपनी जद में ले लेती है...जिसका फायदा सिर्फ और सिर्फ आतंकवाद उठाता है और आपसी बातचीत अंतरराष्ट्रीय ज़रूरत में तब्दील हो जाती है...
चलते चलते सरहद से बंटने का दर्द शाहरुख़ ख़ान की आवाज़ में वीर-ज़ारा के ज़रिए ज़रूर सुन लीजिए...
शनिवार, 26 जून 2010
सोचो क्या पाया इनसां होके...खुशदीप
पंछी, नदिया, पवन के झोंके,
कोई सरहद न इनको रोके,
सरहदें इनसानों के लिए है,
सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इनसां होके...
ये खूबसूरत गीत जावेद अख्तर साहब ने फिल्म रिफ्यूज़ी के लिए लिखा था...सरहद से बंटने का दर्द क्या होता है, शिद्दत के साथ इस गीत में महसूस किया जा सकता है...भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी बातचीत होती है, सरहद का ख्याल ज़ेहन में आ ही जाता है...लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा कि इस सरहद के मायने क्या होते हैं...आप एक घर में रहते रहें...फिर अचानक उसी घर के बीच दीवार खड़ी कर दी जाए...आप दीवार के उस पार नहीं जा सकते...दीवार के उस पार वाले इधर नहीं आ सकते...
गृह मंत्री पी चिदंबरम पाकिस्तान में हैं...पाकिस्तान समेत सार्क के सभी देशों से आतंकवाद के मसले पर बात कर रहे हैं...कल विदेश सचिव निरुपमा राव ने पाकिस्तान के विदेश सचिव सलमान बशीर से बात की थी...15 जुलाई को विदेश मंत्री एस एम कृष्णा इस्लामाबाद में ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से बात करेंगे...बात तो दोनों देशों के बीच 175 से ज़्यादा बार पहले भी की जा चुकी है...लेकिन नतीजा क्या निकला...नतीजा निकल भी नहीं सकता...
दरअसल राजनीति, कूटनीति इस मुद्दे को सुलझा लेंगे, ये बहुत दूर की कौड़ी लगता है...इस मसले को सुलझाएंगे दोनों देशों के लोग ही...वो लोग जिनके लिए सरहद का मतलब ज़मीन पर खिंची हुई एक लकीर नहीं बल्कि भावनाओं से जुड़ा मसला है...इसलिए जितना ज़्यादा दोनों ओर के लोग आपस में मिलेंगे उतना ही शक और अविश्वास का माहौल दूर होगा...
पाकिस्तान का कोई बच्चा जिसके दिल में छेद है, भारत आकर बैंगलुरू में डा देवी शेट्टी से आपरेशन करा कर भला चंगा होकर वतन लौटता है तो उसकी मां के दिल से कितनी दुआएं निकलती होंगी, ये भावना की भाषा के ज़रिए ही समझा जा सकता है...या इस भाषा को समझा जा सकता है उस कश्मीर सिंह की पत्नी और 3 बच्चों के ज़रिेए जो 35 साल पाकिस्तान की जेल में काटकर 4 मार्च 2008 को वाघा बार्डर से भारत लौटा था...उसकी रिहाई संभव हो सकी थी पाकिस्तान के ही एक मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी के ज़रिए...अंसार बर्नी ने कश्मीर सिंह की रिहाई के लिए अदालत से लेकर पाकिस्तान की हुकूमत तक पर जो दबाव बनाया, उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है...उनकी कोशिशों के दम पर 35 साल बाद एक पत्नी को पति के दीदार हुए...बच्चों को फिर से पिता का प्यार मिला...
सरहद की बंदिशों के चलते कोई इनसान इतना बेबस हो जाए कि अपनों की एक झलक पाने को ही तरस जाए, तो सोचिए क्या बीतती होगी उसके दिल पर...आज़ाद मुल्क में जन्मे होने की वजह से हमें यही लगता है 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान के वजूद में आने के साथ ही दोनों देशों के बीच ऐसी लकीर खिंच गई, जिसने ज़मीन के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी हमेशा के लिए बांट दिया...लेकिन ये हक़ीक़त नहीं है...क्या है इस सरहद का सच, ये मैं आपको कल अपनी पोस्ट में बताऊंगा...
क्रमश:
कोई सरहद न इनको रोके,
सरहदें इनसानों के लिए है,
सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इनसां होके...
ये खूबसूरत गीत जावेद अख्तर साहब ने फिल्म रिफ्यूज़ी के लिए लिखा था...सरहद से बंटने का दर्द क्या होता है, शिद्दत के साथ इस गीत में महसूस किया जा सकता है...भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी बातचीत होती है, सरहद का ख्याल ज़ेहन में आ ही जाता है...लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा कि इस सरहद के मायने क्या होते हैं...आप एक घर में रहते रहें...फिर अचानक उसी घर के बीच दीवार खड़ी कर दी जाए...आप दीवार के उस पार नहीं जा सकते...दीवार के उस पार वाले इधर नहीं आ सकते...
गृह मंत्री पी चिदंबरम पाकिस्तान में हैं...पाकिस्तान समेत सार्क के सभी देशों से आतंकवाद के मसले पर बात कर रहे हैं...कल विदेश सचिव निरुपमा राव ने पाकिस्तान के विदेश सचिव सलमान बशीर से बात की थी...15 जुलाई को विदेश मंत्री एस एम कृष्णा इस्लामाबाद में ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से बात करेंगे...बात तो दोनों देशों के बीच 175 से ज़्यादा बार पहले भी की जा चुकी है...लेकिन नतीजा क्या निकला...नतीजा निकल भी नहीं सकता...
दरअसल राजनीति, कूटनीति इस मुद्दे को सुलझा लेंगे, ये बहुत दूर की कौड़ी लगता है...इस मसले को सुलझाएंगे दोनों देशों के लोग ही...वो लोग जिनके लिए सरहद का मतलब ज़मीन पर खिंची हुई एक लकीर नहीं बल्कि भावनाओं से जुड़ा मसला है...इसलिए जितना ज़्यादा दोनों ओर के लोग आपस में मिलेंगे उतना ही शक और अविश्वास का माहौल दूर होगा...
पाकिस्तान का कोई बच्चा जिसके दिल में छेद है, भारत आकर बैंगलुरू में डा देवी शेट्टी से आपरेशन करा कर भला चंगा होकर वतन लौटता है तो उसकी मां के दिल से कितनी दुआएं निकलती होंगी, ये भावना की भाषा के ज़रिए ही समझा जा सकता है...या इस भाषा को समझा जा सकता है उस कश्मीर सिंह की पत्नी और 3 बच्चों के ज़रिेए जो 35 साल पाकिस्तान की जेल में काटकर 4 मार्च 2008 को वाघा बार्डर से भारत लौटा था...उसकी रिहाई संभव हो सकी थी पाकिस्तान के ही एक मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी के ज़रिए...अंसार बर्नी ने कश्मीर सिंह की रिहाई के लिए अदालत से लेकर पाकिस्तान की हुकूमत तक पर जो दबाव बनाया, उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है...उनकी कोशिशों के दम पर 35 साल बाद एक पत्नी को पति के दीदार हुए...बच्चों को फिर से पिता का प्यार मिला...
सरहद की बंदिशों के चलते कोई इनसान इतना बेबस हो जाए कि अपनों की एक झलक पाने को ही तरस जाए, तो सोचिए क्या बीतती होगी उसके दिल पर...आज़ाद मुल्क में जन्मे होने की वजह से हमें यही लगता है 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान के वजूद में आने के साथ ही दोनों देशों के बीच ऐसी लकीर खिंच गई, जिसने ज़मीन के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी हमेशा के लिए बांट दिया...लेकिन ये हक़ीक़त नहीं है...क्या है इस सरहद का सच, ये मैं आपको कल अपनी पोस्ट में बताऊंगा...
क्रमश:
शुक्रवार, 25 जून 2010
मक्खन सेर, मक्खनी सवा सेर...खुशदीप
कुछ दिन पहले खबर आई थी कि औद्योगिक उत्पादन की दर ने देश में कृषि उत्पादन को कहीं पीछे छोड़ दिया है...यानि अब अपना देश कृषि प्रधान नहीं रहा...एक और मामले में हम किसी से पीछे नहीं हैं...बच्चों के उत्पादन में...अगर यही रफ्तार रही तो चीन को पछाड़ कर हम बीस-पच्चीस साल में ही विश्व में सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश का तमगा हासिल कर लेंगे...
लेकिन पश्चिम के कई देशों में उलटी ही गंगा बह रही है...वहां की सरकारें कम बच्चे होने की वजह से परेशान हैं...ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे करने के लिए लोगों को तरह-तरह के प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं...मक्खन ने ये सुना तो पत्नी मक्खनी के साथ उसी देश में बसने के लिए चला गया...
वहां दोनों को एक साल में ही जुड़वा बच्चे हो गए...लेकिन तभी उस देश में ऐलान किया गया कि जिसके तीन या ज़्यादा बच्चे होंगे उसे सरकार की तरफ़ से फ्लैट इनाम में दिया जाएगा...लेकिन शर्त ये होगी कि बच्चे के डीएनए का मिलान बाप के डीएनए से किया जाएगा...
ये सुनते ही मक्खन की बांछें खिल गईं...मक्खनी से बोला...दरअसल वो पड़ोस वाले घर में भी हाल में जो नन्हा मेहमान आया है, वो भी तुम्हारे इसी नाचीज़ की मेहरबानी है...मैं अभी उसे लेकर आया, अब तो हमारा फ्लैट पक्का...
मक्खन पड़ोस से नन्हे मेहमान को घर ले आया...लेकिन ये क्या, अब अपने ही जुड़वा बच्चे घर से गायब हो गए...मक्खन ने मक्खनी से पूछा...अपने जुड़वा बच्चे कहां गए...मक्खनी ने जवाब दिया...तुम जिस पड़ोसी के घर गए थे...वही पड़ोसी उन जुड़वा बच्चों को ले गया है...कैसे रोकती, सरकार ने शर्त ही ऐसी रख दी है...
लेकिन पश्चिम के कई देशों में उलटी ही गंगा बह रही है...वहां की सरकारें कम बच्चे होने की वजह से परेशान हैं...ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे करने के लिए लोगों को तरह-तरह के प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं...मक्खन ने ये सुना तो पत्नी मक्खनी के साथ उसी देश में बसने के लिए चला गया...
वहां दोनों को एक साल में ही जुड़वा बच्चे हो गए...लेकिन तभी उस देश में ऐलान किया गया कि जिसके तीन या ज़्यादा बच्चे होंगे उसे सरकार की तरफ़ से फ्लैट इनाम में दिया जाएगा...लेकिन शर्त ये होगी कि बच्चे के डीएनए का मिलान बाप के डीएनए से किया जाएगा...
ये सुनते ही मक्खन की बांछें खिल गईं...मक्खनी से बोला...दरअसल वो पड़ोस वाले घर में भी हाल में जो नन्हा मेहमान आया है, वो भी तुम्हारे इसी नाचीज़ की मेहरबानी है...मैं अभी उसे लेकर आया, अब तो हमारा फ्लैट पक्का...
मक्खन पड़ोस से नन्हे मेहमान को घर ले आया...लेकिन ये क्या, अब अपने ही जुड़वा बच्चे घर से गायब हो गए...मक्खन ने मक्खनी से पूछा...अपने जुड़वा बच्चे कहां गए...मक्खनी ने जवाब दिया...तुम जिस पड़ोसी के घर गए थे...वही पड़ोसी उन जुड़वा बच्चों को ले गया है...कैसे रोकती, सरकार ने शर्त ही ऐसी रख दी है...
गुरुवार, 24 जून 2010
सबसे खुशकिस्मत कौन...खुशदीप
संसार में सबसे खुशकिस्मत इनसान कौन है...
सबसे खुशकिस्मत इनसान वो है जिसके बेटे की फोटो बिज़नेस वर्ल्ड के कवर पर छपती है...
सबसे खुशकिस्मत इनसान वो है जिसकी बेटी की फोटो इंडिया टुडे के कवर पर छपती है...
सबसे खुशकिस्मत इनसान वो है जिसकी गर्ल फ्रेंड की फोटो फिल्म फेयर के कवर पर छपती है...
सबसे खुशकिस्मत इनसान वो है जिसकी पत्नी की फोटो न्यूज़पेपर के मिसिंग कॉलम में छपती है...
और और मेरा सपना टूट गया...
पता चला कि मैं खुशदीप हूं, खुशकिस्मत नहीं...
सबसे खुशकिस्मत इनसान वो है जिसके बेटे की फोटो बिज़नेस वर्ल्ड के कवर पर छपती है...
सबसे खुशकिस्मत इनसान वो है जिसकी बेटी की फोटो इंडिया टुडे के कवर पर छपती है...
सबसे खुशकिस्मत इनसान वो है जिसकी गर्ल फ्रेंड की फोटो फिल्म फेयर के कवर पर छपती है...
सबसे खुशकिस्मत इनसान वो है जिसकी पत्नी की फोटो न्यूज़पेपर के मिसिंग कॉलम में छपती है...
और और मेरा सपना टूट गया...
पता चला कि मैं खुशदीप हूं, खुशकिस्मत नहीं...
बुधवार, 23 जून 2010
'कैप्टन', 'एमए हाफ', 'साहित्य-पसंद' लड़के के लिए योग्य कन्या चाहिए....खुशदीप
आजकल कोई किसी को रिश्ता नहीं बताता...संयुक्त परिवार रहे नहीं, न्यूक्लियर फैमिलीज़ का चलन है...ऐसे में शादी लायक बेटे-बेटियों के लिए ज़्यादातर अखबार-पत्रिकाओं में मेट्रीमोनियल एड्स, मेट्रीमोनियल वेबसाइट्स या मैरिज ब्यूरो के ज़रिए ही रिश्ते ढूंढे जाते है...लेकिन इस तरह के रिश्तों में लड़के-लड़कियों की खूबियों को बढ़ाचढ़ा कर गिनाया जाता है...खामियों को चतुरता के साथ छुपा लिया जाता है...लेकिन सच्चाई कब तक छुपाई जा सकती है...रिश्ते के बाद भेद खुलते हैं तो तनाव बढ़ता ही जाता है...रिश्ते भी टूटने के कगार पर आ जाते हैं...आख़िर क्यों होता है ऐसा....आज इस का जवाब मैंने स्लॉग ओवर में ढूंढने की कोशिश की है...
स्लॉग ओवर
एक महाशय ने अपने निखट्टू बेटे के लिए अखबार में शादी का एड दिया...'कैप्टन', 'एम ए हाफ़', 'साहित्य में रूचि रखने वाले' लड़के के लिए योग्य, सुंदर कन्या चाहिए...
तो जनाब एक अक्ल का अंधा फंस ही गया...अपनी लड़की का रिश्ता महाशय जी के लड़के से कर दिया...
अब शादी के बाद हक़ीकत पता चली तो...
लड़का सेना में नहीं मुहल्ले की कबड्डी टीम का कैप्टन था...
'एम ए हाफ़' का मतलब लड़का नवीं फेल था...लड़के के बाप का तर्क था उसने झूठ नहीं बोला था...एम ए करने में आजकल किसी को सत्रह साल लगाने पड़ते हैं....(12+3+2=17)... अब इसका आधा किया जाए तो साढ़े आठ क्लास बैठती है...लड़का नवीं फेल है इसलिए हो गया न 'एम ए हाफ़'...
लड़के की जिस साहित्य में रुचि थी, अब दिल थाम कर उसका भी नाम सुन लीजिए...सत्यकथा, मनोहर कहानियां, सच्चे किस्से...
स्लॉग ओवर
एक महाशय ने अपने निखट्टू बेटे के लिए अखबार में शादी का एड दिया...'कैप्टन', 'एम ए हाफ़', 'साहित्य में रूचि रखने वाले' लड़के के लिए योग्य, सुंदर कन्या चाहिए...
तो जनाब एक अक्ल का अंधा फंस ही गया...अपनी लड़की का रिश्ता महाशय जी के लड़के से कर दिया...
अब शादी के बाद हक़ीकत पता चली तो...
लड़का सेना में नहीं मुहल्ले की कबड्डी टीम का कैप्टन था...
'एम ए हाफ़' का मतलब लड़का नवीं फेल था...लड़के के बाप का तर्क था उसने झूठ नहीं बोला था...एम ए करने में आजकल किसी को सत्रह साल लगाने पड़ते हैं....(12+3+2=17)... अब इसका आधा किया जाए तो साढ़े आठ क्लास बैठती है...लड़का नवीं फेल है इसलिए हो गया न 'एम ए हाफ़'...
लड़के की जिस साहित्य में रुचि थी, अब दिल थाम कर उसका भी नाम सुन लीजिए...सत्यकथा, मनोहर कहानियां, सच्चे किस्से...
मंगलवार, 22 जून 2010
ब्लॉगिंग का बुखार, दिल पे मत ले यार...खुशदीप
क्या कहा नापसंद का चटका लगाना है...अरे कहां लगाऊं...ये चिट्ठा जगत, इंडली, ब्लॉग प्रहरी वालों ने ऑप्शन ही नहीं छोड़ रखा...यार ये तो अपुन को कहीं का नहीं छोड़ेंगे...एक वही उस्तरा तो हमारे हाथ लगा था, वो भी ब्लॉगवाणी के बैठ जाने से हाथ से चला गया...अब इन चिट्ठा जगत, इंडली और ब्लॉग प्रहरी वालों को कोई समझाए कि जल्दी से जल्दी नापसंद के चटकों का बटन एग्रीगेटर पर लगाएं...
यार इन्होंने तो बैठे-बिठाए हमारा रोज़गार ही छीन लिया...अब कैसे खेले नापसंद-नापसंद...कैसे किसी की पोस्ट को हॉट लिस्ट से बाहर कर परपीड़ा का रसास्वादन करें...अब यहां तो वही पोस्ट ऊपर जा रही है जिसे सबसे ज़्यादा टिप्पणियां मिल रही हैं...
क्या करें...हर टिप्पणी के जवाब में एक धन्यवाद की टिप्पणी ठोकना शुरू कर दें...लेकिन ब्लॉगर बिरादरी बड़ी ताड़ू है फट से ताड़ जाएगी...फाउल फाउल चिल्लाना शुरू कर देगी...फिर क्या करें यार...अभी तो कुछ मत कर...बस सब्र का घूंट पी और लंबी तान कर सो जा...घबराता क्यूं है प्यारे...कभी तो हमारा दिन भी आएगा...बस दिल पे मत ले यार...
ये ब्लॉगिंग नहीं है आसां,
बस इतना समझ लीजे...
आग का दरिया है...
बस डूब के जाना है...
यार इन्होंने तो बैठे-बिठाए हमारा रोज़गार ही छीन लिया...अब कैसे खेले नापसंद-नापसंद...कैसे किसी की पोस्ट को हॉट लिस्ट से बाहर कर परपीड़ा का रसास्वादन करें...अब यहां तो वही पोस्ट ऊपर जा रही है जिसे सबसे ज़्यादा टिप्पणियां मिल रही हैं...
क्या करें...हर टिप्पणी के जवाब में एक धन्यवाद की टिप्पणी ठोकना शुरू कर दें...लेकिन ब्लॉगर बिरादरी बड़ी ताड़ू है फट से ताड़ जाएगी...फाउल फाउल चिल्लाना शुरू कर देगी...फिर क्या करें यार...अभी तो कुछ मत कर...बस सब्र का घूंट पी और लंबी तान कर सो जा...घबराता क्यूं है प्यारे...कभी तो हमारा दिन भी आएगा...बस दिल पे मत ले यार...
ये ब्लॉगिंग नहीं है आसां,
बस इतना समझ लीजे...
आग का दरिया है...
बस डूब के जाना है...
सोमवार, 21 जून 2010
जब तक ब्लॉगवाणी कॉमा में है, स्वर्ग-नर्क का फ़र्क समझिए...खुशदीप
ब्लॉगवाणी कॉमा में है, सीता जी की दुविधा को लेकर ऐसी अटकी है कि सुलझने का नाम ही नहीं ले रही है...डॉक्टर भी नहीं बता पा रहे हैं कि आखिर मर्ज़ क्या है...चलो देर-सबेर डायग्नोस हो ही जाएगा...फिलहाल तो चिट्ठा जगत, इंडली, ब्लॉग प्रहरी से ही अपनी ब्लॉगास बुझाओ... तब तक ब्लॉगवुड के बाबागण कोई न कोई इलाज़ ढूंढ ही लेंगे...
वैसे पिछले कुछ अरसे से ब्लॉगवुड के बाबा, महाराज भी न जाने कौन सी कंदराओं में धूनी धमाए बैठे हैं...बाहर आने का नाम ही नहीं ले रहे हैं...ऐसे ही एक बाबा का किस्सा आपको सुनाता हूं...ऐसे बाबा को एक दिन राखी सावंत टकरा गई...जी हां, राखी सावंत सिर्फ प्रभु चावलाओं या रजत शर्माओं को ही नहीं टकराती है...बाबाओं से भी पंगे लेती है...
स्वर्ग और नर्क
एक दिन बाबा गुरु घंटाल के पास जाकर राखी सावंत ने बड़ी श्रद्धा के साथ पूछा...बाबा जी बताइए, अगर मैं नए छोकरों (मीका नहीं) को किस करूंगी तो क्या होगा...
बाबा गुरु घंटाल...सीधे नर्क में जाएगी, बालिके और क्या होगा...
राखी सावंत... और बाबा जी अगर मैं आपको किस कर लूं तो क्या होगा...
बाबा गुरु घंटाल...बड़ी चालाक है बालिके....हैं....हैं...सीधे स्वर्ग जाना चाहती है...
वैसे पिछले कुछ अरसे से ब्लॉगवुड के बाबा, महाराज भी न जाने कौन सी कंदराओं में धूनी धमाए बैठे हैं...बाहर आने का नाम ही नहीं ले रहे हैं...ऐसे ही एक बाबा का किस्सा आपको सुनाता हूं...ऐसे बाबा को एक दिन राखी सावंत टकरा गई...जी हां, राखी सावंत सिर्फ प्रभु चावलाओं या रजत शर्माओं को ही नहीं टकराती है...बाबाओं से भी पंगे लेती है...
स्वर्ग और नर्क
एक दिन बाबा गुरु घंटाल के पास जाकर राखी सावंत ने बड़ी श्रद्धा के साथ पूछा...बाबा जी बताइए, अगर मैं नए छोकरों (मीका नहीं) को किस करूंगी तो क्या होगा...
बाबा गुरु घंटाल...सीधे नर्क में जाएगी, बालिके और क्या होगा...
राखी सावंत... और बाबा जी अगर मैं आपको किस कर लूं तो क्या होगा...
बाबा गुरु घंटाल...बड़ी चालाक है बालिके....हैं....हैं...सीधे स्वर्ग जाना चाहती है...
रविवार, 20 जून 2010
मां की जगह बाप ले नहीं सकता, लोरी दे नहीं सकता...खुशदीप
अस्सी के दशक के शुरू में नर्गिस की कैंसर से मौत के बाद उनके पति सुनील दत्त ने एक फिल्म बनाई थी दर्द का रिश्ता...उस फिल्म से खुशबू ने बाल कलाकार के तौर पर शुरुआत की थी...वही खुशबू जो साउथ की टॉप हीरोइन बनी और शादी से पहले यौन संबंधों को जायज़ करार देने वाले बयान देकर विवादों के घेरे में रहीं...खैर आज फादर्स डे 100 साल का हो गया है, इसलिए बात सिर्फ पिता की...पहले ये गाना सुन लीजिए...
मां की जगह बाप ले नहीं सकता, लोरी दे नहीं सकता
कल यूपी में बीएड एन्ट्रेंस का इम्तिहान था...कई माओं ने भी ये इम्तिहान दिया...मां अंदर हाल में जिस वक्त इम्तिहान दे रही थीं...उनके पति बाहर गर्मी में बच्चों को संभाल रहे थे...उन बेचारों की हालत देखते ही बनती थी...वाकई उन्हें दो-तीन घंटे में ही आटे-दाल का भाव पता चल रहा था कि किस तरह बच्चों को संभालने के लिए माओं को मशक्कत करनी पड़ती होगी...
आज फॉदर्स डे पर बी एस पाबला जी ने भी बड़ी शानदार पोस्ट लिखी है-मेरे पापा को तो बर्दाश्त करना मुश्किल होता जा रहा है...इसमें पाबला जी ने बड़े सटीक ढंग से बताया है कि किस तरह चार साल की उम्र से लेकर 60 साल की उम्र तक पापा को लेकर विचार बदलते बदलते फिर वहीं आ टिकते हैं जहां से शुरू हुए थे...
मैं पाबला जी की पोस्ट पढ़ने के बाद बस इतना ही कहना चाहूंगा...
हम उन किताबों को काबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं,
जिन्हें पढ़कर बेटे बाप को ख़ब्ती समझते हैं...
फादर्स डे का इतिहास
वाशिंगटन स्पोकेन के सोनोरा स्मार्ट डॉ़ड की पहल पर सबसे पहले 19 जून 1910 को फादर्स डे मनाया गया...उन्हें फादर्स डे का विचार मदर्स डे के बढ़ते प्रचार और आयोजनों से मिला था...दिलचस्प बात ये है कि जहां मदर्स डे, डॉटर्स डे, टीचर्स डे, वेलेटाइंस डे आदि की तारीख दुनिया भर में एक सी रहती है...वहीं फादर्स डे अमेरिका, यूके, कनाडा, हांगकांग, जापान, पाकिस्तान, मलयेशिया, चीन और भारत समेत 55 देशों में जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है...
सर्बिया में 6 जनवरी, रूस में 23 फरवरी, पुर्तगाल-इटली समेत 8 देशों में 19 मार्च, रोमानिया में मई का दूसरा रविवार, डेनमार्क में 5 जून, इजिप्ट समेत 5 देशों में 21 जून, डोमिनिकन रिपब्लिक में जुलाई का आखिरी रविवार, ताइवान में 8 अगस्त, आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड समेत 4 देशों में सितंबर का प्रथम सप्ताह, स्वीडन समेत 5 देशों में नवंबर के दूसरे रविवार, थाइलैंड में 5 दिसंबर और बुल्गारिया में 26 दिसंबर को इसका आयोजन किया जाता है...
लेकिन ये सब उस युग की देन है जहां माता-पिता के लिए वक्त ही नहीं होता...सिर्फ एक दिन फादर्स या मदर्स डे मनाकर और कोई गिफ्ट देकर उन्हें खुश करने की कोशिश की जाती है...लेकिन ये भूल जाते हैं कि मां के दूध का कर्ज या बाप के फ़र्ज का हिसाब कुछ भी कर लो नहीं चुकाया जा सकता...ये फादर्स डे या मदर्स डे के चोंचले छोड़कर बस इतनी कोशिश की जाए कि दिन में सिर्फ पांच-दस मिनट ही बुज़ुर्गों के साथ अच्छी तरह हंस-बोल लिया जाए...यकीन मानिए इससे ज़्यादा और उन्हें कुछ चाहिए भी नहीं...
मां की जगह बाप ले नहीं सकता, लोरी दे नहीं सकता
कल यूपी में बीएड एन्ट्रेंस का इम्तिहान था...कई माओं ने भी ये इम्तिहान दिया...मां अंदर हाल में जिस वक्त इम्तिहान दे रही थीं...उनके पति बाहर गर्मी में बच्चों को संभाल रहे थे...उन बेचारों की हालत देखते ही बनती थी...वाकई उन्हें दो-तीन घंटे में ही आटे-दाल का भाव पता चल रहा था कि किस तरह बच्चों को संभालने के लिए माओं को मशक्कत करनी पड़ती होगी...
आज फॉदर्स डे पर बी एस पाबला जी ने भी बड़ी शानदार पोस्ट लिखी है-मेरे पापा को तो बर्दाश्त करना मुश्किल होता जा रहा है...इसमें पाबला जी ने बड़े सटीक ढंग से बताया है कि किस तरह चार साल की उम्र से लेकर 60 साल की उम्र तक पापा को लेकर विचार बदलते बदलते फिर वहीं आ टिकते हैं जहां से शुरू हुए थे...
मैं पाबला जी की पोस्ट पढ़ने के बाद बस इतना ही कहना चाहूंगा...
हम उन किताबों को काबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं,
जिन्हें पढ़कर बेटे बाप को ख़ब्ती समझते हैं...
फादर्स डे का इतिहास
वाशिंगटन स्पोकेन के सोनोरा स्मार्ट डॉ़ड की पहल पर सबसे पहले 19 जून 1910 को फादर्स डे मनाया गया...उन्हें फादर्स डे का विचार मदर्स डे के बढ़ते प्रचार और आयोजनों से मिला था...दिलचस्प बात ये है कि जहां मदर्स डे, डॉटर्स डे, टीचर्स डे, वेलेटाइंस डे आदि की तारीख दुनिया भर में एक सी रहती है...वहीं फादर्स डे अमेरिका, यूके, कनाडा, हांगकांग, जापान, पाकिस्तान, मलयेशिया, चीन और भारत समेत 55 देशों में जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है...
सर्बिया में 6 जनवरी, रूस में 23 फरवरी, पुर्तगाल-इटली समेत 8 देशों में 19 मार्च, रोमानिया में मई का दूसरा रविवार, डेनमार्क में 5 जून, इजिप्ट समेत 5 देशों में 21 जून, डोमिनिकन रिपब्लिक में जुलाई का आखिरी रविवार, ताइवान में 8 अगस्त, आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड समेत 4 देशों में सितंबर का प्रथम सप्ताह, स्वीडन समेत 5 देशों में नवंबर के दूसरे रविवार, थाइलैंड में 5 दिसंबर और बुल्गारिया में 26 दिसंबर को इसका आयोजन किया जाता है...
लेकिन ये सब उस युग की देन है जहां माता-पिता के लिए वक्त ही नहीं होता...सिर्फ एक दिन फादर्स या मदर्स डे मनाकर और कोई गिफ्ट देकर उन्हें खुश करने की कोशिश की जाती है...लेकिन ये भूल जाते हैं कि मां के दूध का कर्ज या बाप के फ़र्ज का हिसाब कुछ भी कर लो नहीं चुकाया जा सकता...ये फादर्स डे या मदर्स डे के चोंचले छोड़कर बस इतनी कोशिश की जाए कि दिन में सिर्फ पांच-दस मिनट ही बुज़ुर्गों के साथ अच्छी तरह हंस-बोल लिया जाए...यकीन मानिए इससे ज़्यादा और उन्हें कुछ चाहिए भी नहीं...
शनिवार, 19 जून 2010
मर्द अगर ज़्यादा समझदार बने तो...खुशदीप
एक शादीशुदा जोड़ा...उम्र 65 के आसपास...दोनों शादी की चालीसवीं सालगिरह मनाने के लिए बेहद खूबसूरत रेस्तरां पहुंचे...हल्का हल्का रोमांटिक संगीत...ऊपर से कैंडल लाइट डिनर का मज़ा...
अचानक उनके टेबल पर कहीं से नन्ही परी पहुंची...
परी ने कहा...आप दोनों इतने अच्छे, एक-दूसरे को समझने वाले, हर वक्त प्यार करने वाले पति-पत्नी हैं...मैं दोनों की एक-एक इच्छा पूरी कर सकती हूं...
ये सुनते ही पत्नी ने कहा...सच, मैं पति के साथ पूरी दुनिया की सैर करना चाहती हूं...
परी ने अपनी जादू की छड़ी घुमाई...फौरन दुनिया की सैर कराने वाले आलीशान क्रूज़ की आल-पेड वर्ल्ड टूर की दो टिकट आ गईं...
ये सब चल रहा था कि पति गहरी सोच में डूबा रहा...वो बस परी और पत्नी के बीच चल रही बातचीत को गौर से सुन रहा था...
काफ़ी मनन करने के बाद बोला...डॉर्लिंग हाऊ रोमांटिक यू आर...लेकिन ये ऐसा मौका है जो ज़िंदगी में दोबारा कभी नहीं आएगा...माई लव, आई एम सॉरी...मैं चाहता हूं कि मुझे अपने से कम से कम 30 साल छोटी पत्नी मिल जाए...
ये सुनकर पत्नी और परी दोनों ही बहुत निराश हुए...लेकिन क्या किया जा सकता था...परी इच्छा पूरी करने का वादा जो कर चुकी थी...वादा वादा होता है...
परी ने जादू की छड़ी घुमाई...और....और...
...
...
...
पति 95 साल का हो गया...
निष्कर्ष...बेवफ़ा लेकिन बेवकूफ़ पतियों को याद रखना चाहिए कि परियां मेल नहीं फीमेल होती हैं...
अचानक उनके टेबल पर कहीं से नन्ही परी पहुंची...
परी ने कहा...आप दोनों इतने अच्छे, एक-दूसरे को समझने वाले, हर वक्त प्यार करने वाले पति-पत्नी हैं...मैं दोनों की एक-एक इच्छा पूरी कर सकती हूं...
ये सुनते ही पत्नी ने कहा...सच, मैं पति के साथ पूरी दुनिया की सैर करना चाहती हूं...
परी ने अपनी जादू की छड़ी घुमाई...फौरन दुनिया की सैर कराने वाले आलीशान क्रूज़ की आल-पेड वर्ल्ड टूर की दो टिकट आ गईं...
ये सब चल रहा था कि पति गहरी सोच में डूबा रहा...वो बस परी और पत्नी के बीच चल रही बातचीत को गौर से सुन रहा था...
काफ़ी मनन करने के बाद बोला...डॉर्लिंग हाऊ रोमांटिक यू आर...लेकिन ये ऐसा मौका है जो ज़िंदगी में दोबारा कभी नहीं आएगा...माई लव, आई एम सॉरी...मैं चाहता हूं कि मुझे अपने से कम से कम 30 साल छोटी पत्नी मिल जाए...
ये सुनकर पत्नी और परी दोनों ही बहुत निराश हुए...लेकिन क्या किया जा सकता था...परी इच्छा पूरी करने का वादा जो कर चुकी थी...वादा वादा होता है...
परी ने जादू की छड़ी घुमाई...और....और...
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पति 95 साल का हो गया...
निष्कर्ष...बेवफ़ा लेकिन बेवकूफ़ पतियों को याद रखना चाहिए कि परियां मेल नहीं फीमेल होती हैं...
शुक्रवार, 18 जून 2010
बब्बू मान ने किया लाला लाजपत राय का अपमान...खुशदीप
लाला लाजपत राय का नाम कौन नहीं जानता...शहादत की दुनिया में पंजाब केसरी का नाम बड़े मान से लिया जाता है...देश को ब्रिटिश हुकूमत की बेड़ियों से आज़ाद कराने में लाला जी के दिए महत्ती योगदान को कौन भुला सकता है...इतिहास गवाह है कि लाला जी ने 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन के विरोध में लाहौर में प्रदर्शनकारियों की भीड़ की अगवाई की थी...संविधान में संशोधन के लिए साइमन कमीशन भारत आया था...उसी प्रदर्शन में लाला जी पर बेरहमी से लाठियां बरसाई गई थीं...इस घटना के सत्रह दिन बाद यानि 17 नवंबर 1928 को लाला जी ने आखिरी सांस ली थी...
लाला लाजपत राय के बलिदान को हर देशप्रेमी नमन करता है...लेकिन क्या कोई शख्स ऐसा भी है जो लाला जी की शान में गुस्ताखी कर सकता है...उनके बलिदान की खिल्ली उड़ा सकता है...ऐसा ही एक शख्स है पंजाबी गायक बब्बू मान...बब्बू मान ने लंदन के वेंबले एरिना में अपने शो में गाए एक गीत में लाला जी के लिए क्या कहा...
आप खुद ही सुनिए...
सुना आपने...बब्बू मान ने क्या फरमाया...बब्बू मान कह रहा है कि पंजाब के मोगा के डुडिके गांव के एक शख्स (लाला जी) ने शेव करायी थी लेकिन मूंछे बढ़ाई हुई थी...धूप भी उन्हें चुभती थी, इसलिए छाता लेकर आए थे... और साइमन कमीशन का विरोध करते वक्त लाला जी की मौत लाठियों के प्रहार से नहीं बल्कि दिल का दौरा पड़ने से हुई थी...और लाला जी का नाम खामख्वाह शहीदों में आ गया...
पंजाब और पंजाबियों में बब्बू मान के खिलाफ ज़बरदस्त आक्रोश के बाद अब बब्बू मान का कहना है कि उसने जो गाने में कहा वो इतिहास की कुछ किताबों के हवाले से कहा है...और वो इन किताबों का नाम इसलिए नहीं बताना चाहते कि मुद्दे को और तूल मिलेगा और लोगों के दिलों को और ठेस पहुंचेंगी...वाह, बब्बू मान, वाह...अफसोस भी जता रहे हो तो हेकड़ी के साथ...वैसे अगर मान भी लिया जाए कि लाला जी की मौत लाठीचार्ज के 17 दिन बाद दिल का दौरा पड़ने से हुई थी, लेकिन क्या लाला जी के आज़ादी के लिए दिए योगदान को कोई मिटा सकता है...बब्बू मान ने जिस तरह अपने गाने को कंट्रोवर्सियल बनाने के लिए लाला जी का अपमान किया, उसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है...
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा कि बब्बू मान का नाम विवादों में आया हो...पहले भी बब्बू मान ने एक गाने में रिवाल्वर चक ल्यो (रिवाल्वर उठा लो) जैसा युवकों को गलत संदेश देने की कोशिश की थी...बब्बू मान की आवाज़ अच्छी है, चाहने वाले भी पूरी दुनिया में हैं...लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि देश के महानायकों का ही मखौल उड़ाने का उन्हें लाइसेंस मिल गया है...याद रखो बब्बू मान, तुम्हारे चाहने वाले अर्श पर चढ़ा सकते हैं तो मिनटों में तुम्हे फर्श पर पटक भी सकते हैं...
लाला लाजपत राय
लाला लाजपत राय के बलिदान को हर देशप्रेमी नमन करता है...लेकिन क्या कोई शख्स ऐसा भी है जो लाला जी की शान में गुस्ताखी कर सकता है...उनके बलिदान की खिल्ली उड़ा सकता है...ऐसा ही एक शख्स है पंजाबी गायक बब्बू मान...बब्बू मान ने लंदन के वेंबले एरिना में अपने शो में गाए एक गीत में लाला जी के लिए क्या कहा...
आप खुद ही सुनिए...
सुना आपने...बब्बू मान ने क्या फरमाया...बब्बू मान कह रहा है कि पंजाब के मोगा के डुडिके गांव के एक शख्स (लाला जी) ने शेव करायी थी लेकिन मूंछे बढ़ाई हुई थी...धूप भी उन्हें चुभती थी, इसलिए छाता लेकर आए थे... और साइमन कमीशन का विरोध करते वक्त लाला जी की मौत लाठियों के प्रहार से नहीं बल्कि दिल का दौरा पड़ने से हुई थी...और लाला जी का नाम खामख्वाह शहीदों में आ गया...
बब्बू मान
पंजाब और पंजाबियों में बब्बू मान के खिलाफ ज़बरदस्त आक्रोश के बाद अब बब्बू मान का कहना है कि उसने जो गाने में कहा वो इतिहास की कुछ किताबों के हवाले से कहा है...और वो इन किताबों का नाम इसलिए नहीं बताना चाहते कि मुद्दे को और तूल मिलेगा और लोगों के दिलों को और ठेस पहुंचेंगी...वाह, बब्बू मान, वाह...अफसोस भी जता रहे हो तो हेकड़ी के साथ...वैसे अगर मान भी लिया जाए कि लाला जी की मौत लाठीचार्ज के 17 दिन बाद दिल का दौरा पड़ने से हुई थी, लेकिन क्या लाला जी के आज़ादी के लिए दिए योगदान को कोई मिटा सकता है...बब्बू मान ने जिस तरह अपने गाने को कंट्रोवर्सियल बनाने के लिए लाला जी का अपमान किया, उसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है...
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा कि बब्बू मान का नाम विवादों में आया हो...पहले भी बब्बू मान ने एक गाने में रिवाल्वर चक ल्यो (रिवाल्वर उठा लो) जैसा युवकों को गलत संदेश देने की कोशिश की थी...बब्बू मान की आवाज़ अच्छी है, चाहने वाले भी पूरी दुनिया में हैं...लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि देश के महानायकों का ही मखौल उड़ाने का उन्हें लाइसेंस मिल गया है...याद रखो बब्बू मान, तुम्हारे चाहने वाले अर्श पर चढ़ा सकते हैं तो मिनटों में तुम्हे फर्श पर पटक भी सकते हैं...
गुरुवार, 17 जून 2010
आज से नारी-पुरुष की बहस खत्म...खुशदीप
ब्लॉग जगत में रह रह कर नारी-पुरुष को लेकर बहस छिड़ जाती है...लेकिन आज एक ऐसा फॉर्मूला हाथ लगा है कि बहस की कोई गुंजाइश ही नहीं बचती...इस फॉर्मूले से सब कुछ अपने आप ही प्रूव हो जाता है...इसे कोई चुनौती देना चाहता है तो उसे खुद शोध के बाद अपने रिसर्च पेपर को पेश करना होगा...तो लीजिए जनाब दिल थाम कर पढ़िए फॉर्मूला...फिर खुद ही साबित हो जाएगा कि कौन क्या है...
Women शब्द में Men समाहित होता है...
Mrs में Mr समाहित होता है...
Female में Male समाहित होता है...
She में He समाहित होता है...
Madam में Adam समाहित होता है...
निष्कर्ष....Man हमेशा Woman के अंतर्मन में छिपा रहना पसंद करता है...
क्या कोई महानुभाव इसका उलटा भी करके दिखा सकता है...
(साभार- गूगल)
Women शब्द में Men समाहित होता है...
Mrs में Mr समाहित होता है...
Female में Male समाहित होता है...
She में He समाहित होता है...
Madam में Adam समाहित होता है...
निष्कर्ष....Man हमेशा Woman के अंतर्मन में छिपा रहना पसंद करता है...
क्या कोई महानुभाव इसका उलटा भी करके दिखा सकता है...
बुधवार, 16 जून 2010
सड़क पर चटखारे लेने के शौकीन हैं, संभल जाइए...खुशदीप
कर्नाटक के शिमोगा की मैंने एक ऐसी घटना पढ़ी कि मेरी रूह भी कांप गई...सड़क पर ठेले या खोमचे वालों से खाने-पीने की चीज़ों का लुत्फ़ उठाना इतना ख़तरनाक भी हो सकता है...सोच रहा हूं इस मुद्दे पर देश में जागरुकता बहुत कम है और हम बिना सोचे समझे कहीं भी खड़े होकर बिना हाइजिन का ध्यान किए कुछ भी खाने-पीने लगते हैं...स्वाद-स्वाद के चक्कर में भले ही सेहत का कितना भी कबाड़ा क्यों न कर लें...
शिमोगा में दस साल के एक बच्चे ने अन्नानास (पाइनेपल) खाया और बीमार पड़ गया...कई दिन तक कोई आराम न आने पर उसे डॉक्टरों को दिखाया गया तो डायग्नोस में बच्चा एड्स से संक्रमित निकला...इसके बाद बच्चे के परिवार के हर सदस्य का चेक-अप कराया गया...किसी भी सदस्य को एड्स नहीं निकली...फिर डॉक्टरों ने पता लगाने की कोशिश की बच्चे का बाहर किसी व्यक्ति से संपर्क रहा हो या उसने बाहर किसी से कुछ लेकर खाया हो...तो बच्चे ने बताया कि उसने दो हफ्ते पहले स्कूल के बाहर एक खोमचे वाले से कटा हुआ पाइनेपल लेकर खाया था...
डॉक्टरों की टीम ने फौरन उस खोमचे वाले का पता लगाया...उस खोमचे वाले की उंगलियों में कई कट थे...और वो जब भी पाइनेपल काटता था तो उसके रक्त की कुछ बूंदे पाइनेपल तक पहुंच जाती थी...खोमचे वाले का पूरा चेकअप किया गया तो डॉक्टरों को जो अंदेशा था वो सही निकला...खोमचे वाला एड्स का शिकार था...ताज्जुब ये कि खोमचे वाले को खुद भी नहीं पता था कि वो किस ख़तरनाक बीमारी से पीड़ित है...
इसलिए कृपया सभी सजग रहिए...रोडसाइड या अनहाइजिनिक जगह पर कुछ भी खाएं तो पूरे सावधान रहें...
डिस्क्लेमर- ये एजेंसी की रिपोर्ट मैंने पढ़ी...इसे लेकर कुछ संशय भी मेरे मन में जागे...आशा है कि डॉ अमर कुमार , डॉ टी एस दराल मेरे इन संशयों को दूर करने की कृपा करेंगे...ये सबके स्वास्थ्य से जुड़ा मामला है, इसलिए विस्तार से कोई रिपोर्ट भी अपने ब्लॉग पर लिखें तो सबका भला होगा...जहां तक मैं समझता हूं, संक्रमित रक्त या अनप्रोटेक्टेड सेक्स से कोई भी इनसान पहले एचआईवी से संक्रमित होता है...बाद में यही संक्रमण एड्स में तब्दील हो जाता है....अब पता नहीं एजेंसी की रिपोर्ट लिखने वाले का आशय एड्स से था या एचआईवी संक्रमण से...लेकिन क्या इस तरह खाने-पीने की चीज़ों से भी एड्स का वायरस शरीर में प्रवेश कर सकता है...डॉक्टर साहिबान के जवाब के इंतज़ार में...
शिमोगा में दस साल के एक बच्चे ने अन्नानास (पाइनेपल) खाया और बीमार पड़ गया...कई दिन तक कोई आराम न आने पर उसे डॉक्टरों को दिखाया गया तो डायग्नोस में बच्चा एड्स से संक्रमित निकला...इसके बाद बच्चे के परिवार के हर सदस्य का चेक-अप कराया गया...किसी भी सदस्य को एड्स नहीं निकली...फिर डॉक्टरों ने पता लगाने की कोशिश की बच्चे का बाहर किसी व्यक्ति से संपर्क रहा हो या उसने बाहर किसी से कुछ लेकर खाया हो...तो बच्चे ने बताया कि उसने दो हफ्ते पहले स्कूल के बाहर एक खोमचे वाले से कटा हुआ पाइनेपल लेकर खाया था...
डॉक्टरों की टीम ने फौरन उस खोमचे वाले का पता लगाया...उस खोमचे वाले की उंगलियों में कई कट थे...और वो जब भी पाइनेपल काटता था तो उसके रक्त की कुछ बूंदे पाइनेपल तक पहुंच जाती थी...खोमचे वाले का पूरा चेकअप किया गया तो डॉक्टरों को जो अंदेशा था वो सही निकला...खोमचे वाला एड्स का शिकार था...ताज्जुब ये कि खोमचे वाले को खुद भी नहीं पता था कि वो किस ख़तरनाक बीमारी से पीड़ित है...
इसलिए कृपया सभी सजग रहिए...रोडसाइड या अनहाइजिनिक जगह पर कुछ भी खाएं तो पूरे सावधान रहें...
डिस्क्लेमर- ये एजेंसी की रिपोर्ट मैंने पढ़ी...इसे लेकर कुछ संशय भी मेरे मन में जागे...आशा है कि डॉ अमर कुमार , डॉ टी एस दराल मेरे इन संशयों को दूर करने की कृपा करेंगे...ये सबके स्वास्थ्य से जुड़ा मामला है, इसलिए विस्तार से कोई रिपोर्ट भी अपने ब्लॉग पर लिखें तो सबका भला होगा...जहां तक मैं समझता हूं, संक्रमित रक्त या अनप्रोटेक्टेड सेक्स से कोई भी इनसान पहले एचआईवी से संक्रमित होता है...बाद में यही संक्रमण एड्स में तब्दील हो जाता है....अब पता नहीं एजेंसी की रिपोर्ट लिखने वाले का आशय एड्स से था या एचआईवी संक्रमण से...लेकिन क्या इस तरह खाने-पीने की चीज़ों से भी एड्स का वायरस शरीर में प्रवेश कर सकता है...डॉक्टर साहिबान के जवाब के इंतज़ार में...
मंगलवार, 15 जून 2010
ब्लॉगर लापता, ढ़ूंढ कर लाने वाले को 500 टिप्पणियां ईनाम...खुशदीप
पिछले कई दिनों से एक ब्लॉगर लापता है...कई ब्लॉग होने के बावजूद इस ब्लॉगर की कोई ख़बर नहीं मिल रही...बेहद संवेदनशील ये ब्लॉगर बेहतरीन लिखते हैं...लेकिन बेमतलब अपनी टांग खिंचाई पर उखड़ भी बहुत जल्दी जाते हैं...आई मौज फ़कीर की दिया झोंपडा फूंक की तर्ज पर ये अपनी जेब का माल लुटा कर दूसरों का सत्कार करने में यकीन रखते हैं...लेकिन ज़माना इतना बेमुरव्वत है कि इन्हीं का खा-पीकर इन्हीं को गरियाने लगता है...ऊपर से ये तोहमत और लगा देता है कि अपनी गरज़ के चलते ये लापता बंधु ब्लॉगर मीट का आयोजन करते रहते हैं...इनसे खर्च का हिसाब मांगा जाने लगता है...जैसे इन्होंने किसी की ज़मीन ज़ायदाद हड़प ली हो...इन सब हरकतों से ये ब्लॉगर बंधु इतने त्रस्त हुए कि अपने कंप्यूटर पर ही ताला झड़ दिया...
क्या ब्लॉगर बिरादरी को दो लाइनों में चर्चा करने वाले इन ब्लॉगर जी की कमी नहीं खल रही...मुझे तो खल रही है, इसलिए मैंने दिल की बात लिख दी...अब आप पर ही छोड़ता हूं कि इन ब्लॉगर जी का कोई अता-पता हो तो फौरन सूचित कीजिए...क्या कहा...नाम तो बताऊं...अरे बाबा यही तो ट्विस्ट है...पहचान कौन ?...
एक हिंट देता हूं, इन ब्लॉगर जी का रोज़ कोर्ट-कचहरी से वास्ता रहता है...आज का स्लॉग ओवर भी इसी कोर्ट-कचहरी पर है....
स्लॉग ओवर
किसी मुकदमे पर दो वकीलों में गर्मागर्म बहस छिड़ी हुई थी कि दोनों आपा खो बैठे...
पहला वकील...आप मूर्ख हो...
दूसरा वकील...आप महामूर्ख हो...
जज दखल देते हुए...दोनों विद्वान वकील एक-दूसरे की अच्छी तरह पहचान कर चुके हैं...क्या अब केस की कार्यवाही आगे बढ़ाई जाए...
क्या ब्लॉगर बिरादरी को दो लाइनों में चर्चा करने वाले इन ब्लॉगर जी की कमी नहीं खल रही...मुझे तो खल रही है, इसलिए मैंने दिल की बात लिख दी...अब आप पर ही छोड़ता हूं कि इन ब्लॉगर जी का कोई अता-पता हो तो फौरन सूचित कीजिए...क्या कहा...नाम तो बताऊं...अरे बाबा यही तो ट्विस्ट है...पहचान कौन ?...
एक हिंट देता हूं, इन ब्लॉगर जी का रोज़ कोर्ट-कचहरी से वास्ता रहता है...आज का स्लॉग ओवर भी इसी कोर्ट-कचहरी पर है....
स्लॉग ओवर
किसी मुकदमे पर दो वकीलों में गर्मागर्म बहस छिड़ी हुई थी कि दोनों आपा खो बैठे...
पहला वकील...आप मूर्ख हो...
दूसरा वकील...आप महामूर्ख हो...
जज दखल देते हुए...दोनों विद्वान वकील एक-दूसरे की अच्छी तरह पहचान कर चुके हैं...क्या अब केस की कार्यवाही आगे बढ़ाई जाए...
सोमवार, 14 जून 2010
खुशी और कामयाबी के मंत्र...खुशदीप
भाई राम त्यागी की पोस्ट पढ़ रहा था...उसमें उन्होंने दुनिया के जानेमाने अरबपति वारेन बफ़ेट का ज़िक्र किया था...सरल और साफ़ जीवन जीने वाले वारेन बफ़ेट की कामयाबी की कहानी ऐसी है कि हर कोई उनसे बहुत कुछ सीख सकता है...आज इस पोस्ट में वारेन बफ़ेट की ज़िंदगी के कुछ दिलचस्प आयाम...
वारेन बफ़ेट ने अपना पहला शेयर ग्यारह साल की उम्र में खरीदा था...उन्हें इस बात का अफ़सोस है कि उन्होंने ये काम लेट शुरू किया...
उस वक्त चीज़ें बड़ी सस्ती थी...अपने बच्चों को निवेश करना सिखाइए...
वारेन बफ़ेट ने अखबारों की डिलीवरी से हुई बचत को जो़ड़कर 14 साल की उम्र छोटा फॉर्म हाउस खरीदा...
छोटी छोटी सी बचत से कई चीज़ें खरीदी जा सकती है...
बच्चों को उद्यमिता का महत्व समझाइए...
वारेन बफ़ेट अब भी ओमाहा में उसी तीन बे़डरूम के मकान में रहते हैं जो उन्होंने पचास साल पहले शादी के बाद खरीदा था...
अपनी वास्तविक ज़रूरत से ज़्यादा कभी कुछ मत खरीदो...बच्चों को भी इस आदत के लिए प्रोत्साहित कीजिए...
वारेन बफ़ेट अपनी कार खुद ड्राइव करते हैं...न ड्राइवर उनके साथ होता है और न ही बॉडीगार्ड्स...
आप जो हैं सो हैं...
वारेन बफ़ेट कभी यात्रा के लिए निजी जेट का इस्तेमाल नहीं करते...जबकि वो खुद दुनिया की सबसे बड़ी निजी जेट एयरलाइंस के मालिक हैं...
हमेशा ध्यान रखिए कि आप कोई काम कितने कम से कम खर्च में कर सकते हैं...(हां, गुणवत्ता से समझौता नहीं होना चाहिए)...
वारेन बफ़ेट के ग्रुप बर्कशायर हैथवे में 63 कंपनियां हैं...बफ़ेट साल में एक बार बस इन कंपनियों के CEO'S को एक चिट्ठी लिखते हैं जिसमें साल के टारगेट दिए जाते हैं...न वो मीटिंग लेते हैं और न ही वो किसी को नियमित रूप से कॉल करते हैं...
सही लोगों को सही काम की ज़िम्मेदारी दीजिए और उन पर भरोसा करना सीखिए...
वारेन बफ़ेट कभी हाई सोसायटी के साथ मिक्सअप नहीं होते...घर आकर फुर्सत में खुद के लिए पॉपकॉर्न्स बनाकर टेलीविजन देखना पसंद करते हैं...
कभी शो-ऑफ मत करिए...अपनी पहचान बनाए रखिए और वही करिए जिसे करने में आपको आनंद आता है...
वारेन बफ़ेट के पास न सेल फोन है और न ही उनकी डेस्ट पर कंप्यूटर...
पांच साल पहले माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने वारेन बफ़ेट से पहली मुलाकात की...बिल गेट्स समझते थे कि उनमें और वारेन बफ़ेट में कुछ भी समान नहीं होगा...इसलिए उन्होंने मुलाकात का वक्त सिर्फ आधा घंटा निर्धारित किया...लेकिन मुलाकात शुरू हुई तो दस घंटे तक बदस्तूर चलती रही...और उस दिन के बाद से बिल गेट्स खुद को वारेन बफ़ेट का मुरीद मानने लगे...
युवा पीढ़ी को वारेन बफ़ेट की सलाह...
क्रेडिट कॉर्ड (कर्ज़) से दूर रहें और खुद में ही निवेश करें...
याद रखिए आदमी ने पैसे को बनाया है, पैसे ने आदमी को नहीं...
जैसे आप सादा हैं, वैसे ही अपना जीवन सादा रखें...
जो दूसरे आप से कहते हैं, वो ज़रूरी नहीं कि आप करें...दूसरों की सुनिए...करिए वही जो आपको अच्छा लगता है...
ब्रैंड नामों पर मत जाइए...वहीं चीज़ें इस्तेमाल कीजिए जिसमें आप खुद को आरामदायक समझते हैं...
आखिरकार ये आपकी ज़िंदगी है...आप इस पर दूसरों को राज करने का मौका क्यों देते हैं...
सबसे खुश लोग वो नहीं हैं जिनके पास ऐशो-आराम की सारी चीज़ें मौजूद हैं, खुश वो हैं जो अपने पास हैं, उसी का शुक्रिया करते हुए जीवन का आनंद लेते हैं...
जीवन का सादा और स्मार्ट रास्ता अपनाइए...जीने का लुत्फ़ लीजिए..
वारेन बफ़ेट ने अपना पहला शेयर ग्यारह साल की उम्र में खरीदा था...उन्हें इस बात का अफ़सोस है कि उन्होंने ये काम लेट शुरू किया...
उस वक्त चीज़ें बड़ी सस्ती थी...अपने बच्चों को निवेश करना सिखाइए...
वारेन बफ़ेट ने अखबारों की डिलीवरी से हुई बचत को जो़ड़कर 14 साल की उम्र छोटा फॉर्म हाउस खरीदा...
छोटी छोटी सी बचत से कई चीज़ें खरीदी जा सकती है...
बच्चों को उद्यमिता का महत्व समझाइए...
वारेन बफ़ेट अब भी ओमाहा में उसी तीन बे़डरूम के मकान में रहते हैं जो उन्होंने पचास साल पहले शादी के बाद खरीदा था...
अपनी वास्तविक ज़रूरत से ज़्यादा कभी कुछ मत खरीदो...बच्चों को भी इस आदत के लिए प्रोत्साहित कीजिए...
वारेन बफ़ेट अपनी कार खुद ड्राइव करते हैं...न ड्राइवर उनके साथ होता है और न ही बॉडीगार्ड्स...
आप जो हैं सो हैं...
वारेन बफ़ेट कभी यात्रा के लिए निजी जेट का इस्तेमाल नहीं करते...जबकि वो खुद दुनिया की सबसे बड़ी निजी जेट एयरलाइंस के मालिक हैं...
हमेशा ध्यान रखिए कि आप कोई काम कितने कम से कम खर्च में कर सकते हैं...(हां, गुणवत्ता से समझौता नहीं होना चाहिए)...
सही लोगों को सही काम की ज़िम्मेदारी दीजिए और उन पर भरोसा करना सीखिए...
वारेन बफ़ेट कभी हाई सोसायटी के साथ मिक्सअप नहीं होते...घर आकर फुर्सत में खुद के लिए पॉपकॉर्न्स बनाकर टेलीविजन देखना पसंद करते हैं...
कभी शो-ऑफ मत करिए...अपनी पहचान बनाए रखिए और वही करिए जिसे करने में आपको आनंद आता है...
वारेन बफ़ेट के पास न सेल फोन है और न ही उनकी डेस्ट पर कंप्यूटर...
पांच साल पहले माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने वारेन बफ़ेट से पहली मुलाकात की...बिल गेट्स समझते थे कि उनमें और वारेन बफ़ेट में कुछ भी समान नहीं होगा...इसलिए उन्होंने मुलाकात का वक्त सिर्फ आधा घंटा निर्धारित किया...लेकिन मुलाकात शुरू हुई तो दस घंटे तक बदस्तूर चलती रही...और उस दिन के बाद से बिल गेट्स खुद को वारेन बफ़ेट का मुरीद मानने लगे...
युवा पीढ़ी को वारेन बफ़ेट की सलाह...
क्रेडिट कॉर्ड (कर्ज़) से दूर रहें और खुद में ही निवेश करें...
याद रखिए आदमी ने पैसे को बनाया है, पैसे ने आदमी को नहीं...
जैसे आप सादा हैं, वैसे ही अपना जीवन सादा रखें...
जो दूसरे आप से कहते हैं, वो ज़रूरी नहीं कि आप करें...दूसरों की सुनिए...करिए वही जो आपको अच्छा लगता है...
ब्रैंड नामों पर मत जाइए...वहीं चीज़ें इस्तेमाल कीजिए जिसमें आप खुद को आरामदायक समझते हैं...
आखिरकार ये आपकी ज़िंदगी है...आप इस पर दूसरों को राज करने का मौका क्यों देते हैं...
सबसे खुश लोग वो नहीं हैं जिनके पास ऐशो-आराम की सारी चीज़ें मौजूद हैं, खुश वो हैं जो अपने पास हैं, उसी का शुक्रिया करते हुए जीवन का आनंद लेते हैं...
जीवन का सादा और स्मार्ट रास्ता अपनाइए...जीने का लुत्फ़ लीजिए..
रविवार, 13 जून 2010
शहरोज़ भाई को समर्पित एक कविता...खुशदीप
दो दिन से मेरठ था...आज आकर नेट खोला तो सतीश सक्सेना भाई की पोस्ट और अविनाश वाचस्पति भाई की ईमेल...शहरोज़ भाई को लेकर पढ़ीं...तब से मन इतना खट्टा है कि बता नहीं सकता...देश के सिस्टम पर क्रोध भी बड़ा आ रहा है कि कोई ईमानदार, उसूलों के साथ जीने वाला शख्स इज्ज़त के साथ दो जून की रोटी कमाते हुए परिवार के साथ गुज़र-बसर भी नहीं कर सकता...
बरसों पहले धर्मेंद्र की फिल्म सत्यकाम इस वक्त मेरे ज़ेहन में घूम रही है...उस फिल्म में धर्मेंद्र ईमानदार इंजीनियर होने के नाते क्या क्या नहीं भुगतते, ऋषिकेश मुखर्जी ने बड़ा मार्मिक चित्रण किया था...सतीश सक्सेना भाई शहरोज़ भाई की मदद के लिए जो कुछ भी कर रहे हैं, इसके लिए उन्हें साधुवाद...ये वक्त शहरोज़ भाई की सिर्फ आर्थिक मदद का ही नहीं, बल्कि उनके अंदर दोबारा ये विश्वास जगाने का भी है, कि उन जैसी शख्सीयत की देश में सच्चाई और ईमानदारी को ज़िंदा रखने के लिए कितनी ज़रूरत है...मैं मशहूर कार्टूनिस्ट इरफ़ान भाई से भी बात कर रहा हूं...शायद दिल्ली सरकार में उनकी जान-पहचान से कोई रास्ता निकल आए...
फिलहाल मैं यही सोच रहा हूं कि चमकदार मॉल्स के बीच कॉमनवेल्थ गेम्स का झंडा उठाए हम तेज़ी से विकसित देश होने का दंभ भरते हैं...और हमारे इसी देश में शहरोज़ जैसी खुद्दार प्रतिभाओं को इस तरह के हालात से दो-चार होना पड़ता है...ये विकास है या विनाश...
विकास या विनाश
वो कहते हैं,
विकास हुआ है,
मैं कहता हूं,
विनाश हुआ है,
वो कहते हैं,
सभ्यता फूली-फली है,
मैं कहता हूं,
मानवता सड़ी-गली है,
वो कहते हैं,
पहले इनसान नंगा था,
मैं कहता हूं,
अब आत्मा नंगी है,
वो कहते हैं,
सबको हक़ मिले हैं,
मैं कहता हूं,
ज़ेबों के मुंह खुले हैं,
वो कहते हैं,
नारी को अधिकार मिले हैं,
मैं कहता हूं,
नारी को बाज़ार मिले हैं,
वो कहते हैं,
मैं बहुत बोलता हूं,
मैं कहता हूं,
वो मतलबी ही क्यों बोलते हैं,
वो कहते हैं,
विकास हुआ है,
मैं कहता हूं,
विनाश हुआ है...
बरसों पहले धर्मेंद्र की फिल्म सत्यकाम इस वक्त मेरे ज़ेहन में घूम रही है...उस फिल्म में धर्मेंद्र ईमानदार इंजीनियर होने के नाते क्या क्या नहीं भुगतते, ऋषिकेश मुखर्जी ने बड़ा मार्मिक चित्रण किया था...सतीश सक्सेना भाई शहरोज़ भाई की मदद के लिए जो कुछ भी कर रहे हैं, इसके लिए उन्हें साधुवाद...ये वक्त शहरोज़ भाई की सिर्फ आर्थिक मदद का ही नहीं, बल्कि उनके अंदर दोबारा ये विश्वास जगाने का भी है, कि उन जैसी शख्सीयत की देश में सच्चाई और ईमानदारी को ज़िंदा रखने के लिए कितनी ज़रूरत है...मैं मशहूर कार्टूनिस्ट इरफ़ान भाई से भी बात कर रहा हूं...शायद दिल्ली सरकार में उनकी जान-पहचान से कोई रास्ता निकल आए...
फिलहाल मैं यही सोच रहा हूं कि चमकदार मॉल्स के बीच कॉमनवेल्थ गेम्स का झंडा उठाए हम तेज़ी से विकसित देश होने का दंभ भरते हैं...और हमारे इसी देश में शहरोज़ जैसी खुद्दार प्रतिभाओं को इस तरह के हालात से दो-चार होना पड़ता है...ये विकास है या विनाश...
विकास या विनाश
वो कहते हैं,
विकास हुआ है,
मैं कहता हूं,
विनाश हुआ है,
वो कहते हैं,
सभ्यता फूली-फली है,
मैं कहता हूं,
मानवता सड़ी-गली है,
वो कहते हैं,
पहले इनसान नंगा था,
मैं कहता हूं,
अब आत्मा नंगी है,
वो कहते हैं,
सबको हक़ मिले हैं,
मैं कहता हूं,
ज़ेबों के मुंह खुले हैं,
वो कहते हैं,
नारी को अधिकार मिले हैं,
मैं कहता हूं,
नारी को बाज़ार मिले हैं,
वो कहते हैं,
मैं बहुत बोलता हूं,
मैं कहता हूं,
वो मतलबी ही क्यों बोलते हैं,
वो कहते हैं,
विकास हुआ है,
मैं कहता हूं,
विनाश हुआ है...
शनिवार, 12 जून 2010
दुनिया के दर्द की वजह और 'मक्खन द जीनियस'...खुशदीप
इस दुनिया को काफ़ी दर्द सहना पड़ता है...
इसलिए नहीं कि बुरे लोग हिंसा और उत्पात मचाते हैं...
बल्कि इसलिए कि अच्छे लोग मौन रहते हैं...
-नेपोलियन बोनापार्ट
स्लॉग ओवर
मक्खन ने धूम मचा दी वो भी मैथ्स के पेपर में...
मक्खन को प्रूव करने के लिए आया... sin x = 6 n
मक्खन ने दोनों तरफ से 'n' हटा दिया...
इसलिए six = 6
साथ ही प्रूव हो गया कि कभी मक्खनों के दिमाग़ से नहीं खेलना चाहिए..
इसलिए नहीं कि बुरे लोग हिंसा और उत्पात मचाते हैं...
बल्कि इसलिए कि अच्छे लोग मौन रहते हैं...
-नेपोलियन बोनापार्ट
नेपोलियन बोनापार्ट
1769-1821
स्लॉग ओवर
मक्खन ने धूम मचा दी वो भी मैथ्स के पेपर में...
मक्खन को प्रूव करने के लिए आया... sin x = 6 n
मक्खन ने दोनों तरफ से 'n' हटा दिया...
इसलिए six = 6
साथ ही प्रूव हो गया कि कभी मक्खनों के दिमाग़ से नहीं खेलना चाहिए..
शुक्रवार, 11 जून 2010
और ऐसे शुरू होती है लड़ाई...खुशदीप
मेरे दोस्त पीटर और उसकी पत्नी रबैका के बीच लड़ाई की शुरुआत कैसे होती है...
पीटर रबैका को कैंडल डिनर के लिए रेस्तरां ले गया...
पीटर ने रेस्तरां में अपने लिए ऑर्डर दिया...चिकन सूप, चिकन रोस्टेड, चिकन कोरमा...
वेटर ने हैरत जताते हुए कहा...सर आप बर्ड फ्लू को लेकर चिंतित नहीं है...
पीटर...नहीं, बर्ड अपना आर्डर खुद करेगी...
और इस तरह शुरू हुई लड़ाई...
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पीटर सोफे पर बैठा चैनल सर्फिंग कर रहा था, साथ ही पत्नी रबैका बैठी थी...
रबैका ने चैनल बदलते देख, पीटर से पूछा...टीवी पर क्या देख रहे हो...
पीटर ने जवाब दिया...धूल-मिट्टी
और इस तरह शुरू हुई लड़ाई...
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रबैका अपने स्कूल के एलुमनी फंक्शन में पीटर को भी साथ ले गई...
वहां एक टेबल पर एक हैंडसम जवान अकेले ही व्हिस्की के पैग पर पैग चढ़ा रहा था...
रबैका बार-बार उसे ही देखे जा रही थी...
पीटर ने पूछा...क्या तुम उसे जानती हो...
रबैका ने ठंडी सांस लेकर कहा...हां, वो मेरा एक्स बॉय फ्रैंड है...बरसों पहले जब हम दोनों का ब्रेक हुआ था तभी से इसने व्हिस्की को ही अपना हमदम बना लिया...सुना है कि ये तभी से इस हाल में है...
पीटर....ओ मॉय गॉड, कोई शख्स इतने लंबे वक्त तक सेलीब्रेट कैसे कर सकता है...
और इस तरह शुरू हुई लड़ाई...
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पीटर ने वैडिंग एनिवर्सरी वाले दिन बड़े प्यार से रबैका से पूछा...डार्लिंग आज तुम कहां जाना पसंद करोगी...
रबैका...ऐसी जगह जहां मैं लंबे अरसे से नहीं गई...
पीटर ने कहा...फिर किचन कैसा रहेगा...
और इस तरह शुरू हुई लड़ाई...
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पीटर ने बूढ़ी बीमार सास को क्रिसमस गिफ्ट देने के लिए कब्रिस्तान में जगह बुक करा दी...
अगले साल पीटर ने सास के लिए कोई क्रिसमस गिफ्ट नहीं खरीदा...
सास ने पीटर से पूछा...तुमने मुझे गिफ्ट क्यों नहीं दिया...
पीटर...आपने पिछले साल का गिफ्ट ही इस्तेमाल नहीं किया...
और इस तरह शुरू हुई लड़ाई...
पीटर रबैका को कैंडल डिनर के लिए रेस्तरां ले गया...
पीटर ने रेस्तरां में अपने लिए ऑर्डर दिया...चिकन सूप, चिकन रोस्टेड, चिकन कोरमा...
वेटर ने हैरत जताते हुए कहा...सर आप बर्ड फ्लू को लेकर चिंतित नहीं है...
पीटर...नहीं, बर्ड अपना आर्डर खुद करेगी...
और इस तरह शुरू हुई लड़ाई...
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पीटर सोफे पर बैठा चैनल सर्फिंग कर रहा था, साथ ही पत्नी रबैका बैठी थी...
रबैका ने चैनल बदलते देख, पीटर से पूछा...टीवी पर क्या देख रहे हो...
पीटर ने जवाब दिया...धूल-मिट्टी
और इस तरह शुरू हुई लड़ाई...
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रबैका अपने स्कूल के एलुमनी फंक्शन में पीटर को भी साथ ले गई...
वहां एक टेबल पर एक हैंडसम जवान अकेले ही व्हिस्की के पैग पर पैग चढ़ा रहा था...
रबैका बार-बार उसे ही देखे जा रही थी...
पीटर ने पूछा...क्या तुम उसे जानती हो...
रबैका ने ठंडी सांस लेकर कहा...हां, वो मेरा एक्स बॉय फ्रैंड है...बरसों पहले जब हम दोनों का ब्रेक हुआ था तभी से इसने व्हिस्की को ही अपना हमदम बना लिया...सुना है कि ये तभी से इस हाल में है...
पीटर....ओ मॉय गॉड, कोई शख्स इतने लंबे वक्त तक सेलीब्रेट कैसे कर सकता है...
और इस तरह शुरू हुई लड़ाई...
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पीटर ने वैडिंग एनिवर्सरी वाले दिन बड़े प्यार से रबैका से पूछा...डार्लिंग आज तुम कहां जाना पसंद करोगी...
रबैका...ऐसी जगह जहां मैं लंबे अरसे से नहीं गई...
पीटर ने कहा...फिर किचन कैसा रहेगा...
और इस तरह शुरू हुई लड़ाई...
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पीटर ने बूढ़ी बीमार सास को क्रिसमस गिफ्ट देने के लिए कब्रिस्तान में जगह बुक करा दी...
अगले साल पीटर ने सास के लिए कोई क्रिसमस गिफ्ट नहीं खरीदा...
सास ने पीटर से पूछा...तुमने मुझे गिफ्ट क्यों नहीं दिया...
पीटर...आपने पिछले साल का गिफ्ट ही इस्तेमाल नहीं किया...
और इस तरह शुरू हुई लड़ाई...
गुरुवार, 10 जून 2010
ब्लॉगवाणी, सुन ले अर्ज़ हमारी...खुशदीप
ज़रा सामने तो आओ छलिए,
छुप-छुप छलने में क्या राज़ है,
यूं छुप न सकेगा परमात्मा,
मेरी आत्मा की ये आवाज़ है...
सोच रहे होंगे, क्यों सुना रहा हूं आपको ये गाना...अब ये गाना न गाऊं तो और क्या करूं...कुछ पोस्टों से देख रहा हूं कि किन्हीं भद्रपुरुष को ये इंतज़ार रहता है कि कब मेरी पोस्ट ब्लॉगवाणी पर आए और कब वो नापसंदगी के चटके लगाना शुरू करें...कल तो कमाल ही हो गया...जैसे किसी ने कसम खा ली थी कि मेरी पोस्ट को ब्लॉगवाणी की हॉट लिस्ट में आने ही नहीं देना...जैसे ही आती वैसे ही उसे नापसंदगी का रेड सिग्नल दिखाकर मैदान से बाहर कर दिया जाता...
वैसे ये तो मैं कह-कह कर हार गया हूं, मेरी पोस्ट पर जो भी आपको नापसंद आए, आप खुलकर कमेंट के ज़रिए उसका इज़हार करें..मैं गलत हूंगा तो फौरन अपनी गलती मान लूंगा...अन्यथा यथाशक्ति आपकी शंकाओ को दूर करने की कोशिश करुंगा...लेकिन सिर्फ नापसंदगी का चटका लगाना और कमेंट में कुछ भी न कहना, इससे मैं अपने को कैसे सुधार पाऊंगा...
हां, अगर किसी का ये मकसद है कि मेरे नाम को देखते ही मेरी पोस्ट को टांग पकड़कर नीचे खींच लेना या बाहर का रास्ता दिखा देना...तो मैं उस सज्जन का काम आसान करे देता हूं...मेरा ब्लॉगवाणी से अनुरोध है कि मेरी पोस्ट को हॉट लिस्ट में डाला ही न जाए...इससे उन सज्जन को रोज़-रोज़ जेहमत नहीं उठानी पड़ेगी कि बिना नागा मेरी पोस्ट पर नापसंदगी का चटका लगाना है...
जो ब्लॉगरजन मुझे दिल से करीब मानते हैं, उनसे भी अनुरोध है कि आप मेरे ब्लॉग का लिंक सीधा अपने ब्लॉग पर जोड़ लें, जिससे पोस्ट डालते ही पता चल जाए...बाकी ये मैंने कभी किया नहीं कि किसी ब्लॉगर को कभी ई-मेल भेजा हो कि मेरी पोस्ट आ गई है, कृपया नज़रे इनायत कर दीजिए...ये मेरी फितरत में ही नहीं है...अगर पढ़ने लायक लिखूंगा तो आप ज़रूर पढ़ेंगे...कूड़ा लिखूंगा तो आप उस पर कोई तवज्जो दिए बिना रद्दी की टोकरी में पहुंचा देंगे...
एक बार फिर ब्लॉगवाणी से अनुरोध कि बंदर के हाथ उस्तरा देने वाले इस खेल के औचित्य पर दोबारा सोचे...ब्लॉगवाणी खुद भी तय कर सकता है कि वाकई किसी पोस्ट में नापसंद करने लायक कुछ है या नहीं...या फिर सिर्फ निजी खुन्नस निकालने के लिए ही नापसंदगी के चटके का इस्तेमाल किया जाता है....आखिर ब्लॉगवाणी ने नापसंदगी के चटके के प्रावधान की शुरुआत कुछ सोच समझ कर ही की होगी...ब्लॉगवाणी से फिर आग्रह है कि इस मुद्दे पर अपने विचार स्पष्ट करे...
स्लॉग ओवर
एक आदमी का रिश्तेदार ही डॉक्टर था...बड़ा हंसमुख....शार्प सेंस ऑफ ह्यूमर..
उस आदमी ने डॉक्टर से पूछा कि आप अपने प्रेस्क्रिप्शन में ऐसा क्या लिखते हैं जो सिर्फ कैमिस्ट या पैथोलॉजी लैब वालों को ही समझ आता है...
डॉक्टर...घर के आदमी हो इसलिए ट्रेड सीक्रेट बता देता हूं...हम प्रेस्क्रिप्शन में लिखते हैं...मैंने अपने हिस्से का लूट लिया है, अब तुम भी लूट लो...
डिस्क्लेमर...इन डॉक्टरों में डॉ अमर कुमार, डॉ टी एस दराल, डॉ अनुराग, डॉ प्रवीण चोपड़ा शामिल नहीं है
छुप-छुप छलने में क्या राज़ है,
यूं छुप न सकेगा परमात्मा,
मेरी आत्मा की ये आवाज़ है...
सोच रहे होंगे, क्यों सुना रहा हूं आपको ये गाना...अब ये गाना न गाऊं तो और क्या करूं...कुछ पोस्टों से देख रहा हूं कि किन्हीं भद्रपुरुष को ये इंतज़ार रहता है कि कब मेरी पोस्ट ब्लॉगवाणी पर आए और कब वो नापसंदगी के चटके लगाना शुरू करें...कल तो कमाल ही हो गया...जैसे किसी ने कसम खा ली थी कि मेरी पोस्ट को ब्लॉगवाणी की हॉट लिस्ट में आने ही नहीं देना...जैसे ही आती वैसे ही उसे नापसंदगी का रेड सिग्नल दिखाकर मैदान से बाहर कर दिया जाता...
वैसे ये तो मैं कह-कह कर हार गया हूं, मेरी पोस्ट पर जो भी आपको नापसंद आए, आप खुलकर कमेंट के ज़रिए उसका इज़हार करें..मैं गलत हूंगा तो फौरन अपनी गलती मान लूंगा...अन्यथा यथाशक्ति आपकी शंकाओ को दूर करने की कोशिश करुंगा...लेकिन सिर्फ नापसंदगी का चटका लगाना और कमेंट में कुछ भी न कहना, इससे मैं अपने को कैसे सुधार पाऊंगा...
हां, अगर किसी का ये मकसद है कि मेरे नाम को देखते ही मेरी पोस्ट को टांग पकड़कर नीचे खींच लेना या बाहर का रास्ता दिखा देना...तो मैं उस सज्जन का काम आसान करे देता हूं...मेरा ब्लॉगवाणी से अनुरोध है कि मेरी पोस्ट को हॉट लिस्ट में डाला ही न जाए...इससे उन सज्जन को रोज़-रोज़ जेहमत नहीं उठानी पड़ेगी कि बिना नागा मेरी पोस्ट पर नापसंदगी का चटका लगाना है...
जो ब्लॉगरजन मुझे दिल से करीब मानते हैं, उनसे भी अनुरोध है कि आप मेरे ब्लॉग का लिंक सीधा अपने ब्लॉग पर जोड़ लें, जिससे पोस्ट डालते ही पता चल जाए...बाकी ये मैंने कभी किया नहीं कि किसी ब्लॉगर को कभी ई-मेल भेजा हो कि मेरी पोस्ट आ गई है, कृपया नज़रे इनायत कर दीजिए...ये मेरी फितरत में ही नहीं है...अगर पढ़ने लायक लिखूंगा तो आप ज़रूर पढ़ेंगे...कूड़ा लिखूंगा तो आप उस पर कोई तवज्जो दिए बिना रद्दी की टोकरी में पहुंचा देंगे...
एक बार फिर ब्लॉगवाणी से अनुरोध कि बंदर के हाथ उस्तरा देने वाले इस खेल के औचित्य पर दोबारा सोचे...ब्लॉगवाणी खुद भी तय कर सकता है कि वाकई किसी पोस्ट में नापसंद करने लायक कुछ है या नहीं...या फिर सिर्फ निजी खुन्नस निकालने के लिए ही नापसंदगी के चटके का इस्तेमाल किया जाता है....आखिर ब्लॉगवाणी ने नापसंदगी के चटके के प्रावधान की शुरुआत कुछ सोच समझ कर ही की होगी...ब्लॉगवाणी से फिर आग्रह है कि इस मुद्दे पर अपने विचार स्पष्ट करे...
स्लॉग ओवर
एक आदमी का रिश्तेदार ही डॉक्टर था...बड़ा हंसमुख....शार्प सेंस ऑफ ह्यूमर..
उस आदमी ने डॉक्टर से पूछा कि आप अपने प्रेस्क्रिप्शन में ऐसा क्या लिखते हैं जो सिर्फ कैमिस्ट या पैथोलॉजी लैब वालों को ही समझ आता है...
डॉक्टर...घर के आदमी हो इसलिए ट्रेड सीक्रेट बता देता हूं...हम प्रेस्क्रिप्शन में लिखते हैं...मैंने अपने हिस्से का लूट लिया है, अब तुम भी लूट लो...
डिस्क्लेमर...इन डॉक्टरों में डॉ अमर कुमार, डॉ टी एस दराल, डॉ अनुराग, डॉ प्रवीण चोपड़ा शामिल नहीं है
बुधवार, 9 जून 2010
आदमी में गधा, कुत्ता और बंदर...खुशदीप
भगवान ने गधा बनाया और उससे कहा...
तुम गधे रहोगे...सूरज उगने से लेकर डूबने तक पीठ पर बोझ उठाने का काम करोगे...वो भी बिना थके...खाने में तुम्हे घास मिलेगी...तुम में बुद्धि जैसी कोई चीज़ नहीं होगी, इसलिए तुम 50 साल जिओगे...
गधे ने ये सुनकर कहा..
भगवन, मैं गधा बनूंगा लेकिन 50 साल जीना बहुत ज़्यादा होगा...मुझे सिर्फ 20 साल की उम्र दीजिए...
भगवान ने गधे की इच्छा के अनुरूप उसकी आयु 20 साल कर दी...
-------
भगवान ने कुत्ता बनाया और उससे कहा...
तुम कुत्ता रहोगे और आदमी के घर की रखवाली करोगे...तुम उसके सबसे अच्छे दोस्त होगे...तुम्हें जो बचा-खुचा खाने को आदमी देगा, उसी पर गुज़ारा करोगे...तुम 30 साल तक जिओगे...
कुत्ते ने कहा...
भगवन, 30 साल बहुत ज़्यादा होते हैं...मुझे बस इसकी आधी उम्र दीजिए...
भगवान ने कुत्ते की इच्छा के मुताबिक उसकी आयु 15 वर्ष निर्धारित कर दी...
-----------
भगवान ने बंदर बनाया और उससे कहा...
तुम बंदर रहोगे और पेड़ की एक शाखा से दूसरी शाखा पर उछलते-कूदते रहोगे...अनोखी हरकतें करोगे, तुम्हारी उम्र 20 साल रहेगी...
बंदर ने कहा...
भगवन 20 साल ज़्यादा होते हैं, मुझे 10 साल की ही आयु दीजिए...
भगवान ने बंदर की भी इच्छा पूरी कर दी...
----------
आखिर में भगवान ने आदमी बनाया और कहा...
तुम इनसान बनोगे...इस दुनिया पर अकेले तर्कसंगत प्राणी...
तुम और सभी प्राणियों पर काबू पाने के लिए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करोगे...
तुम दुनिया पर राज करोगे और 20 साल तक जिओगे...
इस पर आदमी बोला...
मैं इनसान रहूंगा लेकिन जीने के लिए सिर्फ 20 साल बहुत कम है...आप ऐसा कीजिए कि गधे ने जो 30 साल छोड़े हैं, वो मुझे दे दीजिए...इसी तरह कुत्ते के छोड़े 15 साल और बंदर के छोड़े 10 साल भी मुझे दे दीजिए...
भगवान ने आदमी की इच्छा भी पूरी कर दी...
------------
इसलिए इनसान जिंदगी के पहले 20 साल आदमी की तरह जीता है...फिर शादी करता है और 30 साल गधे की तरह गुज़ारता है...सारा बोझ पीठ पर उठाए हुए...
फिर उसके बच्चे जवान हो जाते हैं...अब 15 साल वो घर की रखवाली करते हुए गुज़ारता है...और खाने को जो दे दिया जाता है, वही खाता है...
और जब बिल्कुल बूढ़ा हो जाता है तो अगले 10 साल बंदर की तरह गुज़ारता है...एक बेटे या बेटी के घर से दूसरे बेटे या बेटी के घर परिक्रमा करते हुए, अपने पोते-पोतियों, नाती-नातियों का अनोखी हरकतों से दिल बहलाते हुए...
यही जिंदगी है...
आप क्या कहते हैं...
(ई-मेल से अनुवाद)
तुम गधे रहोगे...सूरज उगने से लेकर डूबने तक पीठ पर बोझ उठाने का काम करोगे...वो भी बिना थके...खाने में तुम्हे घास मिलेगी...तुम में बुद्धि जैसी कोई चीज़ नहीं होगी, इसलिए तुम 50 साल जिओगे...
गधे ने ये सुनकर कहा..
भगवन, मैं गधा बनूंगा लेकिन 50 साल जीना बहुत ज़्यादा होगा...मुझे सिर्फ 20 साल की उम्र दीजिए...
भगवान ने गधे की इच्छा के अनुरूप उसकी आयु 20 साल कर दी...
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भगवान ने कुत्ता बनाया और उससे कहा...
तुम कुत्ता रहोगे और आदमी के घर की रखवाली करोगे...तुम उसके सबसे अच्छे दोस्त होगे...तुम्हें जो बचा-खुचा खाने को आदमी देगा, उसी पर गुज़ारा करोगे...तुम 30 साल तक जिओगे...
कुत्ते ने कहा...
भगवन, 30 साल बहुत ज़्यादा होते हैं...मुझे बस इसकी आधी उम्र दीजिए...
भगवान ने कुत्ते की इच्छा के मुताबिक उसकी आयु 15 वर्ष निर्धारित कर दी...
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भगवान ने बंदर बनाया और उससे कहा...
तुम बंदर रहोगे और पेड़ की एक शाखा से दूसरी शाखा पर उछलते-कूदते रहोगे...अनोखी हरकतें करोगे, तुम्हारी उम्र 20 साल रहेगी...
बंदर ने कहा...
भगवन 20 साल ज़्यादा होते हैं, मुझे 10 साल की ही आयु दीजिए...
भगवान ने बंदर की भी इच्छा पूरी कर दी...
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आखिर में भगवान ने आदमी बनाया और कहा...
तुम इनसान बनोगे...इस दुनिया पर अकेले तर्कसंगत प्राणी...
तुम और सभी प्राणियों पर काबू पाने के लिए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करोगे...
तुम दुनिया पर राज करोगे और 20 साल तक जिओगे...
इस पर आदमी बोला...
मैं इनसान रहूंगा लेकिन जीने के लिए सिर्फ 20 साल बहुत कम है...आप ऐसा कीजिए कि गधे ने जो 30 साल छोड़े हैं, वो मुझे दे दीजिए...इसी तरह कुत्ते के छोड़े 15 साल और बंदर के छोड़े 10 साल भी मुझे दे दीजिए...
भगवान ने आदमी की इच्छा भी पूरी कर दी...
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इसलिए इनसान जिंदगी के पहले 20 साल आदमी की तरह जीता है...फिर शादी करता है और 30 साल गधे की तरह गुज़ारता है...सारा बोझ पीठ पर उठाए हुए...
फिर उसके बच्चे जवान हो जाते हैं...अब 15 साल वो घर की रखवाली करते हुए गुज़ारता है...और खाने को जो दे दिया जाता है, वही खाता है...
और जब बिल्कुल बूढ़ा हो जाता है तो अगले 10 साल बंदर की तरह गुज़ारता है...एक बेटे या बेटी के घर से दूसरे बेटे या बेटी के घर परिक्रमा करते हुए, अपने पोते-पोतियों, नाती-नातियों का अनोखी हरकतों से दिल बहलाते हुए...
यही जिंदगी है...
आप क्या कहते हैं...
(ई-मेल से अनुवाद)
मंगलवार, 8 जून 2010
क्या आसान, क्या मुश्किल-2...खुशदीप
जीत की खुशी का इज़हार करना आसान होता है...
हार को गरिमा के साथ स्वीकारना बहुत मुश्किल...
हर रात सपना देखना आसान होता है...
सपने को पूरा करने के लिए संघर्ष बहुत मुश्किल...
हर रात प्रार्थना करना आसान होता है...
छोटी छोटी चीज़ों में भगवान तलाशना बहुत मुश्किल...
हम प्यार करते हैं, कहना आसान होता है...
लेकिन हर दिन प्यार का इज़हार करना बहुत मुश्किल...
हर किसी की आलोचना करना आसान होता है...
लेकिन खुद को बेहतर बनाने के लिए अपने अंदर झांकना बहुत मुश्किल...
अपने को बेहतर बनाने के लिए सोचना आसान होता है...
लेकिन इस सोच को बंद कर असल में कुछ करना बहुत मुश्किल...
किसी से पाना बहुत आसान होता है...
लेकिन खुद किसी को कुछ देना बहुत मुश्किल...
हार को गरिमा के साथ स्वीकारना बहुत मुश्किल...
हर रात सपना देखना आसान होता है...
सपने को पूरा करने के लिए संघर्ष बहुत मुश्किल...
हर रात प्रार्थना करना आसान होता है...
छोटी छोटी चीज़ों में भगवान तलाशना बहुत मुश्किल...
हम प्यार करते हैं, कहना आसान होता है...
लेकिन हर दिन प्यार का इज़हार करना बहुत मुश्किल...
हर किसी की आलोचना करना आसान होता है...
लेकिन खुद को बेहतर बनाने के लिए अपने अंदर झांकना बहुत मुश्किल...
अपने को बेहतर बनाने के लिए सोचना आसान होता है...
लेकिन इस सोच को बंद कर असल में कुछ करना बहुत मुश्किल...
किसी से पाना बहुत आसान होता है...
लेकिन खुद किसी को कुछ देना बहुत मुश्किल...
रविवार, 6 जून 2010
क्या आसान, क्या मुश्किल-1...खुशदीप
टेलीफोन डायरेक्टरी में जगह बनाना आसान होता है...
किसी के दिल में जगह बनाना बहुत मुश्किल...
दूसरों की गलतियां निकालना आसान होता है...
अपनी गलतियों की पहचान करना बहुत मुश्किल...
जिन्हें आप प्यार करते हैं उन्हें आहत करना आसान होता है...
अपनों को दिए ज़ख्मों को भरना बहुत मुश्किल...
दूसरों को माफ़ करना आसान होता है...
अपने लिए दूसरों से माफ़ी मांगना बहुत मुश्किल...
शनिवार, 5 जून 2010
क्रोध अनलिमिटेड...खुशदीप
एक शख्स अपनी नई कार को पॉलिश से चमका रहा था...तभी उसके चार साल के बेटे ने एक नुकीला पत्थर उठा कर कार पर कुछ उकेर दिया...शख्स ने नई कार का ये हाल देखा तो क्रोध से पागल हो गया...उसने गुस्से के दौरे में ही बच्चे के हाथों पर कई बार मारा...वो ये भी भूल गया जब वो ऐसा कर रहा था उसके हाथों में रैंच था...
अस्पताल में बच्चा भर्ती किया गया...मल्टीपल फ्रैक्चर की वजह से वो अपनी सारी उंगलियां खो चुका था...जब बच्चे ने पिता को देखा तो उसकी आंखों से झलक रहा दर्द सहन करना मुश्किल था...मानो वो आंखे कह रही हों...डैड मेरी ये उंगलियां वापस कब आएंगी...
बुरी तरह टूट चुका वो शख्स कार के पास गया और उस पर कई बार लातों से प्रहार किया...थक कर वो वहीं कार के पास बैठ गया...अचानक उसकी नज़र कार पर उस जगह पड़ी जहां बच्चे ने नुकीले पत्थर से कुछ उकेरा था...वहां लिखा था...
...
...
...
'I LOVE YOU DAD'...
स्लॉग चिंतन
गुस्से और प्यार की कोई सीमा नहीं होती...
सुंदर और खुशहाल ज़िंदगी जीनी है तो हमेशा प्यार को मौका दीजिए...
हमेशा याद रखिए...
चीजें इस्तेमाल के लिए होती हैं और लोग प्यार करने के लिए...
आज की दुनिया की दिक्कत यही है कि अब लोग इस्तेमाल किए जाते हैं और चीजों से प्यार किया जाता है...
अस्पताल में बच्चा भर्ती किया गया...मल्टीपल फ्रैक्चर की वजह से वो अपनी सारी उंगलियां खो चुका था...जब बच्चे ने पिता को देखा तो उसकी आंखों से झलक रहा दर्द सहन करना मुश्किल था...मानो वो आंखे कह रही हों...डैड मेरी ये उंगलियां वापस कब आएंगी...
बुरी तरह टूट चुका वो शख्स कार के पास गया और उस पर कई बार लातों से प्रहार किया...थक कर वो वहीं कार के पास बैठ गया...अचानक उसकी नज़र कार पर उस जगह पड़ी जहां बच्चे ने नुकीले पत्थर से कुछ उकेरा था...वहां लिखा था...
...
...
...
'I LOVE YOU DAD'...
स्लॉग चिंतन
गुस्से और प्यार की कोई सीमा नहीं होती...
सुंदर और खुशहाल ज़िंदगी जीनी है तो हमेशा प्यार को मौका दीजिए...
हमेशा याद रखिए...
चीजें इस्तेमाल के लिए होती हैं और लोग प्यार करने के लिए...
आज की दुनिया की दिक्कत यही है कि अब लोग इस्तेमाल किए जाते हैं और चीजों से प्यार किया जाता है...
ये महफ़िल मेरे काम की नहीं...खुशदीप
गोल्ड एफएम पर आज हीर रांझा का एक गीत सुना...कैफ़ी आज़मी के बोल...मदन मोहन का संगीत...रफ़ी साहब की आवाज़...आप सब जानते हैं कि मुझे फिल्मी गीतों के मुखड़ों के ज़रिए कमेंट करने की बुरी आदत है...क्या करूं...अपनी दिल की बात कहने के लिए मुझे इससे अच्छा कोई रास्ता नज़र नहीं आता...आज पूरी पोस्ट ही इस गाने के ज़रिए कहने का मन है...ऐसा क्यों है, मैं खुद भी नहीं जानता...आप बस ये गाना देखिए, पढ़िए और सुनिए...
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
किसको सुनाऊं हाले दिल-ए-बेक़रार का,
बुझता हुआ चराग हूं अपने मज़ार का
ए काश भूल जाऊं, मगर भूलता नहीं
किस धूम से उठा था जनाज़ा बहार का,
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
अपना पता मिले न ख़बर यार की मिले,
दुश्मन को भी ना ऐसी सज़ा प्यार की मिले,
उनको खुदा मिले, है खुदा की जिन्हें तलाश,
मुझको बस इक झलक मेरे दिलदार की मिले,
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
सेहरा में आके भी मुझको ठिकाना न मिला,
गम को भुलाने का, कोई बहाना न मिला,
दिल तरसे जिसमें प्यार को, क्या समझूं उस संसार को
इक जीती बाज़ी हार के, मैं ढूंढू बिछड़े यार को
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
दूर निगाहों से आंसू बहाता है कोई,
कैसे ना जाऊं मैं, मुझको बुलाता है कोई
या टूटे दिल को जोड़ दो, या सारे बंधन तोड़ दो,
ए पर्बत रस्ता दे मुझे, ए कांटों दामन छोड़ दो,
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
किसको सुनाऊं हाले दिल-ए-बेक़रार का,
बुझता हुआ चराग हूं अपने मज़ार का
ए काश भूल जाऊं, मगर भूलता नहीं
किस धूम से उठा था जनाज़ा बहार का,
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
अपना पता मिले न ख़बर यार की मिले,
दुश्मन को भी ना ऐसी सज़ा प्यार की मिले,
उनको खुदा मिले, है खुदा की जिन्हें तलाश,
मुझको बस इक झलक मेरे दिलदार की मिले,
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
सेहरा में आके भी मुझको ठिकाना न मिला,
गम को भुलाने का, कोई बहाना न मिला,
दिल तरसे जिसमें प्यार को, क्या समझूं उस संसार को
इक जीती बाज़ी हार के, मैं ढूंढू बिछड़े यार को
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
दूर निगाहों से आंसू बहाता है कोई,
कैसे ना जाऊं मैं, मुझको बुलाता है कोई
या टूटे दिल को जोड़ दो, या सारे बंधन तोड़ दो,
ए पर्बत रस्ता दे मुझे, ए कांटों दामन छोड़ दो,
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
ये दुनिया ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं,
मेरे काम की नहीं...
बुधवार, 2 जून 2010
एंग्री यंग ब्लॉगर्स, इसे पढ़ो प्लीज़...खुशदीप
क्रोध वो अवस्था होती है जिसमें जीभ दिमाग़ से तेज़ काम करती है...आप अतीत तो नहीं बदल सकते लेकिन आने वाले कल की चिंता में घुलकर आप अपने आज के साथ अन्याय करते हैं...
ऊपर वाला अपना सर्वश्रेष्ठ उसी को देता है जो अपना मुकद्दर ऊपर वाले के हाथ में ही छोड़ देता है...गले लगना सबसे बड़ी नेमत है जो हर एक को माकूल बैठती है...ये किसी भी मौके पर किया जा सकता है...इसकी अदला-बदली आसान होती है..
खिलखिला कर हंसना भगवान की अपनी उजली धूप है...हंसने के लिए वक्त निकालो क्योंकि ये आत्मा का संगीत है...
ऊपर वाला अपना सर्वश्रेष्ठ उसी को देता है जो अपना मुकद्दर ऊपर वाले के हाथ में ही छोड़ देता है...गले लगना सबसे बड़ी नेमत है जो हर एक को माकूल बैठती है...ये किसी भी मौके पर किया जा सकता है...इसकी अदला-बदली आसान होती है..
खिलखिला कर हंसना भगवान की अपनी उजली धूप है...हंसने के लिए वक्त निकालो क्योंकि ये आत्मा का संगीत है...
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